UP SI Mookvidhi Notes Part 1

भारतीय दंड विधान, 1860

स्टीफेन के अनुसार, “अपराध एक ऐसा कृत्य है जो विधि द्वारा निषिद्ध तथा समाज के नैतिक मनोभावों के प्रतिकूल, दोनों ही होता है।”

अपराध के निम्नलिखित चार आवश्यक तत्त्व हैं

  1. मानव,
  2. आपराधिक मनःस्थिति या दुराशय (Mensrea),
  3. आपराधिक कृत्य, तथा
  4. ऐसे आपराधिक कृत्य से मानव तथा समाज को क्षति।

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 1’संहिता के नाम और उसके प्रवर्तन के विस्तार से संबंधित है।
  • भा.दं.सं. को 1 जनवरी, 1862 से लागू किया गया।
  • भा.दं.सं. की धारा-2 के अनुसार, ‘जो व्यक्ति भारत के राज्य क्षेत्र के अंतर्गत अपराध करता है, वह इस संहिता द्वारा दंडित किया जाएगा।
  • इस संहिता की धारा 4 के अनुसार, भारत के बाहर किसी भी स्थान पर भारतीय नागरिक द्वारा या भारत में पंजीकृत किसी पोत या विमान पर, वह चाहे जहां भी हो, किसी व्यक्ति द्वारा इस संहिता के अंतर्गत अपराध किए जाने पर इस संहिता के उपबंध लागू होंगे।
  • भारतीय दंड संहिता की कोई बात विशेष विधि या स्थानीय विधि के उपबंधों पर प्रभाव नहीं डालती है।
  • धारा 51 में दंड के प्रकार बताए गए हैं जो निम्नलिखित हैं

(i) मृत्युदंड, (ii) आजीवन कारावास, (iii) कारावास, जो दो प्रकार का है अर्थात (क) कठोर श्रम के साथ कारावास तथा (ख) सादा कारावास (iv) संपत्ति का समपहरण और (v) जुर्माना।

  • धाराएं 121, 132, 194, 302, 305, 307, 364-क और 396 में मृत्युदंड दिए जाने का प्रावधान है।
  • धारा 57 के अंतर्गत आजीवन कारावास को 20 वर्ष के कारावास के तुल्य गिना जाएगा।
  • धारा 54 के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को न्यायालय द्वारा मृत्युदंड दिया जाता है, तो यदि ‘समुचित सरकार’ उचित समझे तो वह मृत्युदंड को कम कर सकती है।
  • धारा 76 से 95 तक की धाराएं क्षमा योग्य बचावों से संबंधित
  • धारा 96 से 106 तक की धाराएं न्यायोचित प्रतिरक्षा से । संबंधित हैं।
  • धारा 76 के अनुसार, तथ्य की भूल आपराधिक दायित्व के विरुद्ध अच्छा बचाव है परंतु विधि की भूल बचाव नहीं है।
  • धारा 77 में प्रावधान है कि ‘कोई बात अपराध नहीं है जो न्यायिकत’ कार्य करते हुए, न्यायाधीश द्वारा ऐसी किसी शक्ति के प्रयोग में की जाती है या जिसके बारे में उसे सद्भावपूर्वक विश्वास है कि वह उसे विधि द्वारा दी गई है।
  • धारा 78 के अंतर्गत न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में किया गया कार्य अपराध नहीं है।
  • ‘क’ एक पुलिस ऑफिसर वारंट के बिना ‘य’ को, जिसने हत्या की है, पकड़ लेता है। ‘क’ ने कोई अपराध नहीं किया।
  • इस प्रकार एक जल्लाद जो मृत्युदंड निष्पादित करता है
  • भा.दं.सं. की धारा 80 में वर्णित है कि कोई बात अपराध नहीं है जो दुर्घटना से घटित होता है।
  • दुर्घटना एक अच्छी प्रतिरक्षा है किंतु यह अनेक अपवादों के अधीन है जो निम्न हैं
  1. कार्य आपराधिक आशय या ज्ञान के बिना किया गया हो,
  2. कार्य विधिपूर्ण प्रकार और विधिपूर्ण साधनों के द्वारा किया गया हो,
  3. कार्य उचित सावधानी और सतर्कता से किया गया हो,
  4. कार्य विधिपूर्ण हो।

  • भा.दं.सं. की धारा 82 के अंतर्गत कोई बात अपराध नहीं है जो 7 वर्ष से कम आयु के शिशु द्वारा की जाती है।
  • धारा 83 के अंतर्गत 7 वर्ष के ऊपर किंतु 12 वर्ष से कम आयु के अपरिपक्व समझ के शिशु को आपराधिक दायित्व से उन्मुक्ति प्राप्त है।
  • भा.दं.सं. की धारा 84 के अंतर्गत विकृतचित्त व्यक्ति के कार्य को अपराध नहीं माना जाता है।
  • भा.दं.सं. की धारा 94 के अंतर्गत हत्या और मृत्यु से दंडनीय अपराधों को छोड़कर, वह कार्य जिसको कोई व्यक्ति मृत्यु की तुरंत धमकी द्वारा विवश किए जाने के फलस्वरूप करता है, अपराध नहीं होगा।
  • भा.दं.सं. की धारा 96 से 106 तक में व्यक्ति के शरीर तथा संपत्ति संबंधी प्रतिरक्षा के अधिकारों का वर्णन किया गया है।
  • धारा 100 के अनुसार, निम्नलिखित परिस्थितियों में शरीर की प्राइवेट सुरक्षा के अधिकार के उपयोग के लिए किसी व्यक्ति की मृत्यु तक कारित करने का अधिकार है
  1. जब हमले के परिणामस्वरूप मृत्यु की युक्तियुक्त आशंका हो,
  2. जब हमले से घोर उपहति कारित होने की युक्तियुक्त आशंका हो,
  3. बलात्संग के आशय से हमला,
  4. प्रकृति विरुद्ध कामतृष्णा के लिए किया गया हमला,
  5. व्यपहरण/अपहरण करने के लिए किया गया हमला,
  6. सदोष परिरोध के लिए किया गया हमला,
  7. तेजाब फेंकने या प्रयोग करने या उसके प्रयत्न पर गंभीर उपहति की युक्तियुक्त आशंका हो।

Updated: 14/03/2021 — 9:19 am

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *