ब्रिटिश राज का अभ्युदय और प्रथम स्वातंत्रता संग्राम (1857)
ब्रिटिश राज का अभ्युदय
यूरोपीय आगमन: 16वीं और 17वीं शताब्दी में यूरोपीय शक्तियों (पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी, और ब्रिटिश) ने भारत में व्यापारिक गतिविधियों के लिए प्रवेश किया।
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ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी: 1600 ई. में स्थापित, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में व्यापारिक चौकियां स्थापित कीं, जैसे सूरत (1612), मद्रास (1639), बंबई (1668), और कलकत्ता (1690)।
प्रारंभिक संघर्ष: ब्रिटिशों ने अन्य यूरोपीय शक्तियों (विशेष रूप से डच और फ्रांसीसी) को हराकर भारत में प्रभुत्व स्थापित किया। कार्नाटक युद्धों (1746-1763) में फ्रांसीसियों की हार ने ब्रिटिशों को मजबूत किया।
ब्रिटिश विस्तार
प्लासी का युद्ध (1757): रॉबर्ट क्लाइव ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराया। मीर जाफर को नवाब बनाया गया, जिससे ब्रिटिशों का बंगाल पर नियंत्रण स्थापित हुआ।
बक्सर का युद्ध (1764): मीर कासिम, शुजा-उद-दौला, और मुगल सम्राट शाह आलम II की संयुक्त सेना को ब्रिटिशों ने हराया। इसके परिणामस्वरूप इलाहाबाद की संधि (1765) हुई, जिसमें ब्रिटिशों को बंगाल, बिहार, और उड़ीसा की दीवानी (राजस्व संग्रह का अधिकार) मिला।
नियंत्रण का विस्तार: ब्रिटिशों ने मराठों, मैसूर (टीपू सुल्तान), और सिखों के खिलाफ युद्धों के माध्यम से भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा किया।
ब्रिटिश प्रशासन
दोहरी शासन प्रणाली (1765-1772): बंगाल में ब्रिटिशों ने नवाब के नाम पर शासन किया, लेकिन वास्तविक शक्ति कंपनी के पास थी।
रेगुलेटिंग एक्ट (1773): ब्रिटिश सरकार ने कंपनी के प्रशासन को नियंत्रित करने के लिए पहला कानून पारित किया।
पिट्स इंडिया एक्ट (1784): कंपनी के प्रशासन पर और नियंत्रण स्थापित किया गया।
सहायक संधि (1798): लॉर्ड वेलेजली ने भारतीय रियासतों को ब्रिटिश संरक्षण में लाने के लिए इस नीति को लागू किया।
डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स (1848): लॉर्ड डलहौजी ने गोद लेने की नीति के तहत रियासतों (जैसे सतारा, झांसी, नागपुर) को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया।
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
आर्थिक शोषण: ब्रिटिशों ने भारत को कच्चे माल का स्रोत और अपने निर्मित माल का बाजार बनाया। लगान नीतियों (स्थायी बंदोबस्त, रैय्यतवारी, महालवारी) ने किसानों का शोषण किया।
सामाजिक सुधार: सती प्रथा (1829 में विलियम बेंटिक द्वारा प्रतिबंधित), विधवा पुनर्विवाह (1856), और शिक्षा सुधार (मैकाले की मिनट, 1835) लागू किए गए।
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सांस्कृतिक हस्तक्षेप: पश्चिमी शिक्षा और ईसाई मिशनरी गतिविधियों ने भारतीयों में असंतोष पैदा किया।
प्रथम स्वातंत्रता संग्राम (1857)
कारण
राजनीतिक कारण:
- डलहौजी की हड़प नीति (डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स) ने रियासतों के शासकों को असंतुष्ट किया।
- अवध का विलय (1856) और नाना साहब की पेंशन बंद करना।
आर्थिक कारण:
- ब्रिटिश नीतियों से भारतीय हस्तशिल्प उद्योग नष्ट हुए।
- भारी लगान और कर्ज ने किसानों को परेशान किया।
सामाजिक-धार्मिक कारण:
- सती प्रथा पर प्रतिबंध और विधवा पुनर्विवाह जैसे सुधारों को धार्मिक हस्तक्षेप माना गया।
- ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों से हिंदू और मुस्लिम दोनों में असंतोष।
सैन्य कारण:
- भारतीय सिपाहियों को कम वेतन और विदेशी युद्धों में भेजा जाता था।
- एनफील्ड राइफल के कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी के उपयोग की अफवाह ने सिपाहियों को भड़काया।
तात्कालिक कारण:
- 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में मंगल पांडे ने कारतूस के उपयोग के खिलाफ विद्रोह किया और एक ब्रिटिश अधिकारी पर हमला किया।
प्रमुख घटनाएँ
प्रारंभ: 10 मई 1857 को मेरठ में सिपाहियों ने विद्रोह शुरू किया और दिल्ली की ओर कूच किया।
दिल्ली: सिपाहियों ने बहादुर शाह जफर को भारत का सम्राट घोषित किया।
प्रमुख केंद्र:
- कानपुर: नाना साहब और तात्या टोपे ने नेतृत्व किया। ब्रिटिशों ने बाद में इसे वापस लिया और नरसंहार किया।
- लखनऊ: बेगम हजरत महल ने विद्रोह का नेतृत्व किया।
- झांसी: रानी लक्ष्मीबाई ने वीरतापूर्वक युद्ध लड़ा।
- बिहार: कुंवर सिंह ने आरा में विद्रोह का नेतृत्व किया।
दमन: ब्रिटिशों ने 1858 तक विद्रोह को दबा दिया। बहादुर शाह जफर को रंगून निर्वासित किया गया।
परिणाम
- कंपनी शासन का अंत: 1858 में ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर भारत को सीधे ब्रिटिश ताज के अधीन किया।
- गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट (1858): भारत में ब्रिटिश सरकार का प्रत्यक्ष शासन शुरू हुआ।
- भारतीयों में जागरूकता: विद्रोह ने राष्ट्रीय चेतना को जागृत किया, जो बाद में स्वतंत्रता आंदोलन का आधार बना।
- सैन्य और प्रशासनिक परिवर्तन: ब्रिटिशों ने भारतीय सिपाहियों की संख्या कम की और यूरोपीय सैनिकों की संख्या बढ़ाई।
- धार्मिक नीति में बदलाव: ब्रिटिशों ने धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कम किया।
महत्व
1857 का विद्रोह भारत का प्रथम संगठित स्वतंत्रता संग्राम था, जिसने हिंदू-मुस्लिम एकता को प्रदर्शित किया।
इसने ब्रिटिश शासन की कमजोरियों को उजागर किया और बाद के स्वतंत्रता आंदोलनों के लिए प्रेरणा दी।
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