सामान्य हिन्दी – सन्धि नोट्स और प्रैक्टिस क्विज
हिंदी व्याकरण की तैयारी कर रहे हैं? फिर संधि (Sandhi) को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते! यह टॉपिक UPSSSC PET, UP POLICE , UPPSC , CTET, UPTET, REET, TGT/PGT, और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में बार-बार पूछा जाता है।
इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपको देंगे:
🔹 सभी प्रकार की संधियों की सरल परिभाषा व नियम
🔹 प्रत्येक संधि के उदाहरण (Unicode में)
🔹 और सबसे जरूरी – 50+ Practice Questions with Explanation
🎯 अगर आप हिंदी में Top Scorer बनना चाहते हैं, तो संधि को पूरी तरह समझना और नियमित अभ्यास करना बेहद जरूरी है। यही कारण है कि हमने इस पोस्ट में पूरी तैयारी का एक ऐसा सेट तैयार किया है, जिससे आपकी तैयारी सटीक और मजबूत हो जाएगी।
“सपने वही सच होते हैं, जिनकी तैयारी पूरी होती है!
सन्धि की परिभाषा
सन्धि दो वर्णों (स्वर, व्यंजन या विसर्ग) के मेल से होने वाला परिवर्तन है। यह पहले शब्द के अंतिम वर्ण और दूसरे शब्द के प्रथम वर्ण के बीच होता है।
सन्धि के प्रकार
सन्धि के तीन मुख्य प्रकार हैं:
- स्वर सन्धि – दो स्वरों का मेल।
- व्यंजन सन्धि – व्यंजन का स्वर या अन्य व्यंजन के साथ मेल।
- विसर्ग सन्धि – विसर्ग (:) का स्वर या व्यंजन के साथ मेल।
स्वर सन्धि एवं उसके भेद
स्वर सन्धि तब होती है जब पहले शब्द का अंतिम वर्ण और दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण दोनों स्वर हों। इसके पांच भेद हैं।
✨ दीर्घ स्वर सन्धि (Dirgha Svara Sandhi)
🔹 नियम (Rule):
जब लघु या दीर्घ अ, इ, उ स्वर के बाद वही स्वर दोबारा (अ/आ, इ/ई, उ/ऊ) आता है, तो वे दीर्घ स्वर (आ, ई, ऊ) में बदल जाते हैं।
🔸 1. अ + अ = आ
संधि | विग्रह | परिणाम |
---|---|---|
धर्मार्थ | धर्म + अर्थ | धर्मार्थ |
अद्यावधि | अद्य + अवधि | अद्यावधि |
धनार्थी | धन + अर्थी | धनार्थी |
🔸 2. अ + आ = आ
संधि | विग्रह | परिणाम |
---|---|---|
पुस्तकालय | पुस्तक + आलय | पुस्तकालय |
रत्नाकर | रत्न + आकर | रत्नाकार |
धर्मात्मा | धर्म + आत्मा | धर्मात्मा |
🔸 3. आ + अ = आ
संधि | विग्रह | परिणाम |
---|---|---|
मायाधीन | माया + अधीन | मायाधीन |
कदापि | कदा + अपि | कदापि |
विद्यानुराग | विद्या + अनुराग | विद्यानुराग |
🔸 4. आ + आ = आ
संधि | विग्रह | परिणाम |
---|---|---|
विद्यालय | विद्या + आलय | विद्यालय |
आत्मानंद | आत्मा + आनंद | आत्मानंद |
🔸 5. इ + इ = ई
संधि | विग्रह | परिणाम |
---|---|---|
अभीष्ट | अभि + इष्ट | अभीष्ट |
मुनीन्द्र | मुनि + इन्द्र | मुनीन्द्र |
रवीन्द्र | रवि + इन्द्र | रवीन्द्र |
🔸 6. इ + ई = ई
संधि | विग्रह | परिणाम |
---|---|---|
कपीश | कपि + ईश | कपीश |
गिरीश | गिरि + ईश | गिरीश |
अधीश्वर | अधि + ईश्वर | अधीश्वर |
🔸 7. ई + इ = ई
संधि | विग्रह | परिणाम |
---|---|---|
महतीच्छा | महती + इच्छा | महतीच्छा |
देवीच्छा | देवी + इच्छा | देवीच्छा |
लक्ष्मीच्छा | लक्ष्मी + इच्छा | लक्ष्मीच्छा |
🔸 8. ई + ई = ई
संधि | विग्रह | परिणाम |
---|---|---|
महीश | मही + ईश | महीश |
लक्ष्मीश | लक्ष्मी + ईश | लक्ष्मीश |
नदीश | नदी + ईश | नदीश |
🔸 9. उ + उ = ऊ
संधि | विग्रह | परिणाम |
---|---|---|
गुरूपदेश | गुरु + उपदेश | गुरूपदेश |
भानूदय | भानु + उदय | भानूदय |
सूक्ति | सु + उक्ति | सूक्ति |
🔸 10. ऊ + उ = ऊ
संधि | विग्रह | परिणाम |
---|---|---|
स्वयंभूदय | स्वयंभू + उदय | स्वयंभूदय |
वधूत्सव | वधू + उत्सव | वधूत्सव |
🔸 11. ऊ + ऊ = ऊ
संधि | विग्रह | परिणाम |
---|---|---|
भूर्ध्व | भू + ऊर्ध्व | भूर्ध्व |
भूर्जा | भू + ऊर्जा | भूर्जा |
वधूर्मि | वधू + ऊर्मि | वधूर्मि |
🔸 12. ऋ + ऋ = ऋ
संधि | विग्रह | परिणाम |
---|---|---|
मातृण | मातृ + तृण | मातृण |
भ्रातृद्धि | भ्रात् + ऋद्धि | भ्रातृद्धि |
✨ गुण सन्धि (Guna Sandhi)
- जब अ या आ का मेल इ, ई, उ, ऊ, या ऋ से होता है, तो क्रमशः ए, ओ, या अर् बनता है।
- सूत्र: अ/आ + इ/ई = ए, अ/आ + उ/ऊ = ओ, अ/आ + ऋ = अर्
🔹 (अ + इ = ए) के उदाहरण:
- धर्म + इन्द्र = धर्मेन्द्र
- शिव + इच्छा = शिवेच्छा
- अशुभ + इच्छा = अशुभेच्छा
- शत्रु + इन्द्र = शत्रेन्द्र
🔹 (अ + ई = ए) के उदाहरण:
- वसु + ईश = वसुएश
- प्रभात + ईश = प्रभातेश
- रघु + ईश = रघुेश
- धन + ईश = धनेश
- जय + ईश = जयेश
🔹 (आ + इ = ए) के उदाहरण:
- कला + इन्द्र = कलेन्द्र
- माया + इन्द्र = मायेन्द्र
- सभा + इन्द्र = सभेन्द्र
🔹 (आ + ई = ए) के उदाहरण:
- वाणी + ईश = वाणेश
- विभा + ईश = विभेश
- रमा + ईश = रमेश
🔹 (अ + उ = ओ) के उदाहरण:
- स्वर + उपदेश = स्वरुपदेश
- शिव + उदय = शिवारोपय
- मित्र + उद्धार = मित्रोद्धार
- तप + उत्सव = तपोत्सव
🔹 (अ + ऊ = ओ) के उदाहरण:
- पुलक + ऊर्मि = पुलकोर्मि
- मधु + ऊष्मा = मधोष्मा
- जल + ऊर्जा = जलोर्जा
🔹 (आ + उ = ओ) के उदाहरण:
- विद्या + उद्यान = विद्योत्सव
- भूता + उपासना = भूतोपासना
🔹 (आ + ऊ = ओ) के उदाहरण:
- आभा + ऊर्मि = आभोर्मि
- रमा + ऊष्मा = रमोष्मा
🔹 (अ + ऋ = अर्) के उदाहरण:
- देव + ऋषि = देवर्षि
- योग + ऋषि = योगर्षि
🔹 (आ + ऋ = अर्) के उदाहरण:
- माया + ऋषि = मायर्षि
- कला + ऋषि = कलर्षि
✨वृद्धि स्वर सन्धि
जब अ या आ का मेल ए, ऐ, ओ, या औ से होता है, तो ऐ या औ बनता है।
सूत्र: अ/आ + ए/ऐ = ऐ, अ/आ + ओ/औ = औ
🔹 संधि सूत्र (Vṛddhi Sandhi Rule):
अ / आ + ए / ऐ = ऐ
अ / आ + ओ / औ🔹 पहचानने का तरीका:
अगर किसी शब्द में दो स्वरों के मिलने पर ऐ या औ बन रहा है, और यह मेल अ/आ + ए/ऐ/ओ/औ से है, तो वह वृद्धि संधि होगी।
✅ उदाहरण सहित व्याख्या:
🔸 1. अ + ऐ = ऐ
मत + ऐक्य = मतैक्य
(अ + ऐ = ऐ)
सत + ऐश्वर्य = सैश्वर्य
(अ + ऐ = ऐ)
🔸 2. आ + ए = ऐ
सदा + एव = सदैव
(आ + ए = ऐ)
गंगा + एषण = गंगैषण
(आ + ए = ऐ)
🔸 3. अ + ओ = औ
नद + ओघ = नदौघ
(अ + ओ = औ)
वद + ओषधि = वदौषधि
(अ + ओ = औ)
🔸 4. आ + ओ = औ
गंगा + ओघ = गंगौघ
(आ + ओ = औ)
महा + ओषधि = महौषधि
(आ + ओ = औ)
📝 संक्षेप में याद रखने के लिए:
पहला स्वर | दूसरा स्वर | परिणाम |
---|---|---|
अ / आ | ए / ऐ | ऐ |
अ / आ | ओ / औ | औ |
📘 कुछ और उदाहरण:
संधि पूर्व शब्द | संधि के बाद शब्द | परिवर्तन |
---|---|---|
मत + ऐक्य | मतैक्य | अ + ऐ = ऐ |
एक + एक | एकैक | अ + ए = ऐ |
सदा + एव | सदैव | आ + ए = ऐ |
गंगा + ओघ | गंगौघ | आ + ओ = औ |
नद + औघ | नदौघ | अ + औ = औ |
✨यण स्वर सन्धि
जब इ, ई, उ, ऊ, या ऋ के बाद कोई भिन्न स्वर आता है, तो वे क्रमशः य, व, या ऋ में बदल जाते हैं।
🔷 यण सन्धि का सूत्र:
इ / ई + स्वर = य
उ / ऊ + स्वर = व
ऋ + स्वर = र
जब इ, ई, उ, ऊ या ऋ के बाद कोई भिन्न स्वर आता है, तो यह सन्धि होती है और पहले स्वर का रूपांतरण हो जाता है।
✅ 1. इ / ई + स्वर = य
🔹 सूत्र:
इ/ई + अन्य स्वर → य में बदल जाते हैं।
🔹 उदाहरण:
अति + अधिक = अत्यधिक
(इ + अ = य → अत्यधिक)इति + आदि = इत्यादि
(इ + आ = या → इत्यादि)मुनि + इंद्र = मुनीन्द्र
(इ + इ = ई → मुनीन्द्र)रवि + इंद्र = रवीन्द्र
(इ + इ = ई → रवीन्द्र)गिरि + ईश = गिरीश
(इ + ई = ई → गिरीश)
🔹 व्याख्या:
इन उदाहरणों में ‘इ’ या ‘ई’ के बाद जब स्वर आता है, तो ‘इ/ई’ यण रूप में ‘य’ में बदलकर शब्द बनाते हैं।
✅ 2. उ / ऊ + स्वर = व
🔹 सूत्र:
उ/ऊ + अन्य स्वर → व में बदल जाते हैं।
🔹 उदाहरण:
सु + आगत = स्वागत
(उ + आ = वा → स्वागत)अनु + एक = अन्वेषण
(उ + ए = वे → अन्वेषण)गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
(उ + उ = ऊ → गुरूपदेश)भानु + उदय = भानूदय
(उ + उ = ऊ → भानूदय)वधू + उपालम्भ = वधूपालम्भ
(ऊ + उ = ऊ → वधूपालम्भ)
🔹 व्याख्या:
यहाँ ‘उ’ या ‘ऊ’ के बाद स्वर आने पर, ‘उ/ऊ’ ‘व’ में परिवर्तित हो जाते हैं या स्वर दीर्घ हो जाता है।
✅ 3. ऋ + स्वर = र
🔹 सूत्र:
ऋ + अन्य स्वर → र हो जाता है।
🔹 उदाहरण:
पितृ + अनुमति = पित्रनुमति
(ऋ + अ = र → पित्रनुमति)मातृ + अनुग्रह = मात्रानुग्रह
(ऋ + अ = र → मात्रानुग्रह)भ्रातृ + ऋद्धि = भ्रातृद्धि
(ऋ + ऋ = ऋ → भ्रातृद्धि)देवृ + आत्मा = देव्रात्मा
(ऋ + आ = रा → देव्रात्मा)राजृ + ईश = राजरीश
(ऋ + ई = री → राजरीश)
🔹 व्याख्या:
जब ‘ऋ’ के बाद कोई स्वर आता है, तो ‘ऋ’ ‘र’ में बदल जाता है और संधि के अनुसार नया शब्द बनता है।
🟨 अयादि संधि (Ayādi Sandhi)
- जब ए, ऐ, ओ, औ के स्थान पर अय्, आय्, अव्, आव् बनते हैं, तो यह अयादि सन्धि कहलाती है।
- सूत्र: ए = अय्, ऐ = आय्, ओ = अव्, औ = आव्
🔍 उदाहरण सहित व्याख्या:
✅ 1. ए → अय्
🔹 उदाहरण:
नय + अन = नयन
(ए → अय् → नय + अन = नयन)दय + अन = दयन
(ए → अय्)गये + अन = गयान
(ए → अय्)
🔹 व्याख्या:
“नय”, “दय”, “गये” आदि शब्दों के अंतिम स्वर ए होते हैं। जब इनसे “अन” जैसा स्वरारंभ शब्द जुड़ता है, तो ए → अय् हो जाता है।
✅ 2. ऐ → आय्
🔹 उदाहरण:
नाय + अक = नायक
(ऐ → आय् → नाय् + अक = नायक)भाय + अन = भायन
(ऐ → आय्)दयाय + अक = दयायक
(ऐ → आय्)
🔹 व्याख्या:
ऐ से अंत वाले शब्द जैसे “नाय” जब किसी स्वरारंभ शब्द से मिलते हैं, तो ऐ → आय् में बदलते हैं।
✅ 3. ओ → अव्
🔹 उदाहरण:
पव + अन = पवन
(ओ → अव् → पव् + अन = पवन)भो + अन = भवन
(ओ → अव्)लो + अन = लवन
(ओ → अव्)
🔹 व्याख्या:
“पव”, “भो”, “लो” जैसे ओ-कारांत शब्दों में ओ → अव् होकर “पव्”, “भव्”, “लव्” बनते हैं।
✅ 4. औ → आव्
🔹 उदाहरण:
पाव + अक = पावक
(औ → आव् → पाव् + अक = पावक)भाव + अन = भावन
(औ → आव्)गौ + अक = गावक
(औ → आव्)भाव + उक = भावुक
(औ → आव्)
🔹 व्याख्या:
औ-कारांत शब्द जैसे “पाव”, “भाव”, “गौ” आदि औ → आव् में बदलते हैं, जिससे संधि बनती है।
व्यंजन सन्धि
व्यंजन सन्धि तब होती है जब दो व्यंजनों का मेल होता है या व्यंजन का स्वर के साथ मेल होता है।
व्यंजन सन्धि के नियम
🔹वर्ग के पहले वर्ण का तीसरे वर्ण में परिवर्तन
जब वर्ग का पहला वर्ण (क, च, ट, त, प) स्वर या अंतःस्थ व्यंजन (य, र, ल, व) से मिलता है, तो वह अपने वर्ग के तीसरे वर्ण (ग, ज, ड, द, ब) में बदल जाता है।
उदाहरण:
- दिक् + अंत = दिगंत (क → ग)
- वाक् + ईश = वागीश (क → ग)
- अच् + आदि = अजादि (च → ज)
- षट् + आनन = षडानन (ट → ड)
- सत् + भावना = सद्भावना (त → द)
🔹वर्ग के पहले वर्ण का पांचवें वर्ण में परिवर्तन
जब वर्ग का पहला वर्ण अनुनासिक वर्ण (ं, म, न) से मिलता है, तो वह अपने वर्ग के पांचवें वर्ण (ङ, ञ, ण, न, म) में बदल जाता है।
उदाहरण:
- वाक् + मय = वाङ्मय (क → ङ)
- षट् + मुख = षण्मुख (ट → ण)
- तत् + मय = तन्मय (त → न)
- जगत् + नाथ = जगन्नाथ (त → न)
🔹‘छ’ संबंधी नियम
जब हस्व स्वर या आ के बाद ‘छ’ आता है, तो ‘छ’ से पहले ‘च्’ जुड़ जाता है।
उदाहरण:
- स्व + छंद = स्वच्छंद
- परि + छेद = परिच्छेद
- अनु + छेद = अनुच्छेद
🔹‘त’ संबंधी नियम
- (i) त + ल = त → ल्ल
- उत् + लास = उल्लास
- तत् + लीन = तल्लीन
- (ii) त + ज/झ = त → ज
- सत् + जल = सज्जल
- जगत् + जननी = जगज्जननी
- (iii) त + ट/ड = त → ड
- बृहत् + टीका = बृहट्टीका
- उत् + डयन = उड्डयन
- (iv) त + श = त → च, श → छ
- उत् + श्वास = उच्छ्वास
- सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
- (v) त + च/छ = त → च
- उत् + चारण = उच्चारण
- जगत् + छाया = जगच्छाया
- (vi) त + ह = त → द, ह → ध
- तत् + हित = तद्धित
- उत् + हार = उद्धार
- (i) त + ल = त → ल्ल
🔹‘न’ संबंधी नियम
- जब ऋ, र, या ष के बाद ‘न’ आता है, तो ‘न’ → ‘ण’ हो जाता है।
- उदाहरण:
- परि + नाम = परिणाम
- राम + अयन = रामायण
- भूष + अन = भूषण
🔹‘म’ संबंधी नियम
- (i) म + क-म = म → अनुस्वार (ं)
- सम् + गति = संगति
- सम् + चय = संचय
- (ii) म + य, र, ल, व, श, ष, स = म → अनुस्वार
- सम् + योग = संयोग
- सम् + राख = संरक्षा
- (iii) म + म (कोई परिवर्तन नहीं)
- सम् + मान = सम्मान
- (i) म + क-म = म → अनुस्वार (ं)
🔹‘स’ संबंधी नियम
- जब स से पहले अ/आ के अलावा स्वर हो, तो स → ष।
- उदाहरण:
- वि + सम = विषम
- सु + समा = सुषमा
विसर्ग सन्धि
विसर्ग सन्धि तब होती है जब विसर्ग (:) का स्वर या व्यंजन के साथ मेल होता है। इसके सात नियम हैं।
विसर्ग सन्धि के नियम
🔹विसर्ग का ‘ओ’ हो जाना
जब विसर्ग के पहले और बाद में अ, या य, र, ल, व, ह हो, तो विसर्ग → ओ।
उदाहरण:
- मनः + अनुकूल = मनोकूल
- अधः + गति = अधोगति
- नमः + रवि = नमोरवि
🔹विसर्ग का ‘र्’ हो जाना
जब विसर्ग के पहले अ/आ के अलावा स्वर हो और बाद में स्वर या य, र, ल, व हो, तो विसर्ग → र्।
उदाहरण:
- निः + आशा = निराशा
- दुः + आनंद = दुरानंद
🔹विसर्ग का ‘श’ हो जाना
जब विसर्ग के बाद च या छ हो, तो विसर्ग → श।
उदाहरण:
- निः + छल = निश्छल
- दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
🔹विसर्ग का ‘ष’ हो जाना
जब विसर्ग के पहले इ/उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ हो, तो विसर्ग → ष।
उदाहरण:
- निः + कपट = निष्कपट
- धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
- निः + फल = निष्फल
🔹विसर्ग का ‘स’ हो जाना
जब विसर्ग के बाद त या स हो, तो विसर्ग → स।
उदाहरण:
- नमः + ते = नमस्ते
- निः + तेज = निस्तेज
🔹विसर्ग का लोप हो जाना
जब विसर्ग के बाद र हो, तो विसर्ग लुप्त हो जाता है और पूर्व स्वर दीर्घ हो जाता है।
उदाहरण:
- निः + रोग = नीरोग
- निः + रस = नीरस
🔹विसर्ग में परिवर्तन न होना
जब विसर्ग के पहले अ और बाद में क, ख, प, फ हो, तो विसर्ग ज्यों का त्यों रहता है।
उदाहरण:
अन्तः + करण = अन्तःकरण
प्रातः + काल = प्रातःकाल