ब्रिटिश राज के सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव: विस्तृत नोट्स और प्रैक्टिस क्विज
सामाजिक प्रभाव
1. शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन
पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार: ब्रिटिश शासन ने पाश्चात्य शिक्षा को बढ़ावा दिया। 1835 में लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति ने अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया, जिसका उद्देश्य भारतीयों को अंग्रेजी प्रशासन के लिए क्लर्क तैयार करना था।
मिशनरी गतिविधियाँ: ईसाई मिशनरियों ने स्कूल और कॉलेज स्थापित किए, जिससे पाश्चात्य विचारधारा का प्रसार हुआ।
परंपरागत शिक्षा का ह्रास: संस्कृत और फारसी आधारित परंपरागत पाठशालाएँ और मदरसे कमजोर हुए।
प्रभाव: शिक्षित भारतीय मध्यम वर्ग का उदय हुआ, जिसने बाद में स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
2. सामाजिक सुधार आंदोलन
सती प्रथा का अंत: 1829 में लॉर्ड विलियम बेंटिक ने सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया।
विधवा पुनर्विवाह: 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित हुआ, जिसे ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने समर्थन दिया।
बाल विवाह पर नियंत्रण: सामाजिक सुधारकों जैसे केशव चंद्र सेन ने बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाई।
प्रभाव: भारतीय समाज में रूढ़ियों के खिलाफ जागरूकता बढ़ी और आधुनिक विचारों का प्रसार हुआ।
3. जाति और धर्म पर प्रभाव
जाति व्यवस्था: ब्रिटिश नीतियों, जैसे जनगणना और भूमि व्यवस्था, ने जाति व्यवस्था को और सख्त किया। लेकिन साथ ही, शिक्षित वर्ग में जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाजें भी उठीं।
धार्मिक सुधार: ब्रह्म समाज, आर्य समाज, और थियोसोफिकल सोसाइटी जैसे संगठनों ने धार्मिक और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा दिया।
प्रभाव: सामाजिक और धार्मिक जागरूकता बढ़ी, जिसने राष्ट्रीय चेतना को बल दिया।
4. महिलाओं की स्थिति
शिक्षा: महिलाओं के लिए स्कूलों की स्थापना शुरू हुई, जैसे बेथ्यून स्कूल (1849)।
सामाजिक सुधार: सती, बाल विवाह, और पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियों पर रोक लगाने के प्रयास हुए।
प्रभाव: महिलाओं में शिक्षा और जागरूकता का धीमा लेकिन प्रगतिशील विकास हुआ।
5. सांस्कृतिक परिवर्तन
पाश्चात्य प्रभाव: अंग्रेजी साहित्य, विज्ञान, और प्रौद्योगिकी का प्रभाव बढ़ा।
प्रेस और पत्रकारिता: प्रिंटिंग प्रेस के आगमन से समाचार पत्रों और पत्रिकाओं का विकास हुआ, जिसने जनता में जागरूकता फैलाई।
प्रभाव: भारतीय समाज में आधुनिकता और राष्ट्रीयता की भावना विकसित हुई।
आर्थिक प्रभाव
1. कृषि पर प्रभाव
स्थायी बंदोबस्त: 1793 में लॉर्ड कॉर्नवालिस ने बंगाल में स्थायी बंदोबस्त लागू किया, जिसके तहत जमींदारों को स्थायी रूप से कर वसूलने का अधिकार दिया गया।
रैयतवाड़ी और महालवाड़ी व्यवस्था: दक्षिण और पश्चिमी भारत में रैयतवाड़ी और उत्तर भारत में महालवाड़ी व्यवस्था लागू की गई।
प्रभाव: किसानों पर कर का बोझ बढ़ा, जिससे गरीबी और कर्जदारी बढ़ी। परंपरागत कृषि प्रणाली कमजोर हुई।
2. उद्योगों का ह्रास
हस्तशिल्प उद्योग का पतन: ब्रिटिश नीतियों ने भारतीय हस्तशिल्प उद्योग, विशेष रूप से सूती और रेशमी कपड़ा उद्योग, को नष्ट कर दिया। मशीन निर्मित सस्ते ब्रिटिश कपड़े भारत में आयात किए गए।
प्रभाव: कारीगर बेरोजगार हुए और ग्रामीण अर्थव्यवस्था कमजोर हुई।
3. आधुनिक उद्योगों का विकास
रेलवे और संचार: ब्रिटिश शासन ने रेलवे (1853 में प्रथम रेल) और तार प्रणाली शुरू की, जिससे व्यापार और प्रशासन में सुधार हुआ।
उद्योगों की शुरुआत: कोयला, चाय, और जूट उद्योगों का विकास हुआ, लेकिन यह मुख्य रूप से ब्रिटिश हितों के लिए था।
प्रभाव: भारतीय अर्थव्यवस्था को ब्रिटिश औपनिवेशिक हितों के अधीन कर दिया गया।
4. वाणिज्यिक कृषि
नकदी फसलों का प्रसार: नील, चाय, कॉफी, और कपास जैसी नकदी फसलों की खेती को बढ़ावा दिया गया।
प्रभाव: खाद्य फसलों की कमी हुई, जिससे खाद्य संकट और अकाल (जैसे 1876-78 का अकाल) बढ़े।
5. आर्थिक शोषण
धन का अपवहन: भारत से धन को ब्रिटेन भेजा गया, जिसे ‘ड्रेन ऑफ वेल्थ’ कहा गया। दादाभाई नौरोजी ने इसकी आलोचना की।
उच्च कर: भारी करों ने भारतीय किसानों और व्यापारियों को आर्थिक रूप से कमजोर किया।
प्रभाव: भारत की आर्थिक समृद्धि कम हुई और निर्भरता बढ़ी।
6. आधुनिक बैंकिंग और व्यापार
बैंकों की स्थापना: ब्रिटिश बैंकों और व्यापारिक कंपनियों ने भारत में व्यापार को नियंत्रित किया।
प्रभाव: भारतीय व्यापारियों को हाशिए पर धकेल दिया गया।