1947-1991 की भारतीय अर्थव्यवस्था: विस्तृत नोट्स ( UPSSSC PET Special)
1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद, भारतीय अर्थव्यवस्था ने एक नया दौर शुरू किया। यह अवधि (1947-1991) भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था, नियोजित विकास और समाजवादी दृष्टिकोण की विशेषता रही। इस अवधि में भारत ने औद्योगीकरण, आत्मनिर्भरता और सामाजिक समानता पर जोर दिया। नीचे इस अवधि की अर्थव्यवस्था के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है।
1. स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति
औपनिवेशिक शोषण का प्रभाव:
- ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था को औपनिवेशिक शोषण का सामना करना पड़ा। भारतीय संसाधनों का दोहन हुआ, जिससे अर्थव्यवस्था कृषि-प्रधान और पिछड़ी हुई।
- औद्योगिक विकास सीमित था; केवल कुछ क्षेत्रों जैसे कपड़ा और रेलवे में प्रगति हुई।
- प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी, और गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी व्यापक थी।
कृषि पर निर्भरता:
- लगभग 70-75% जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी, लेकिन उत्पादकता कम थी।
- जमींदारी प्रथा और भूमि असमानता प्रमुख समस्याएँ थीं।
औद्योगिक आधार की कमी:
- स्वतंत्रता के समय भारत में भारी उद्योगों का अभाव था। केवल हल्के उद्योग जैसे कपड़ा और चीनी उद्योग मौजूद थे।
आयात-निर्यात असंतुलन:
- भारत कच्चे माल का निर्यात करता था और तैयार माल आयात करता था, जिससे व्यापार घाटा बढ़ता था।
2. मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल
मिश्रित अर्थव्यवस्था का चयन:
- भारत ने निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बीच संतुलन बनाने के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया।
- यह मॉडल समाजवादी सिद्धांतों और पूँजीवादी तत्वों का मिश्रण था।
सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका:
- भारी उद्योगों, बुनियादी ढांचे और रणनीतिक क्षेत्रों (जैसे रक्षा, ऊर्जा, रेलवे) में सार्वजनिक क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई।
- निजी क्षेत्र को हल्के उद्योगों और उपभोक्ता वस्तुओं के लिए प्रोत्साहित किया गया।
आत्मनिर्भरता का लक्ष्य:
- आयात पर निर्भरता कम करने और स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया।
3. नियोजित अर्थव्यवस्था और पंचवर्षीय योजनाएँ
नियोजन का उद्भव:
- 1950 में योजना आयोग की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य संसाधनों का सुनियोजित उपयोग और आर्थिक विकास था।
- सोवियत संघ के नियोजित अर्थव्यवस्था मॉडल से प्रेरणा ली गई।
प्रमुख पंचवर्षीय योजनाएँ (1947-1991):
प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-1956)
उद्देश्य:
- कृषि, सिंचाई, और बुनियादी ढांचे का विकास।
- स्वतंत्रता के बाद अर्थव्यवस्था को स्थिर करना और खाद्य संकट को कम करना।
आर्थिक मॉडल:
- हर्रद-डोमर मॉडल पर आधारित, जिसमें पूँजी निवेश और आर्थिक वृद्धि पर जोर दिया गया।
प्रमुख उपलब्धियाँ:
- भाखड़ा नंगल बांध: पंजाब में सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण परियोजना, जिसने कृषि और ग्रामीण विकास को बढ़ावा दिया।
- सामुदायिक विकास कार्यक्रम (1952): ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए शुरू किया गया।
- सिंचाई परियोजनाएँ: हीराकुंड और दामोदर घाटी परियोजनाओं ने कृषि उत्पादकता बढ़ाई।
- पुनर्वास कार्यक्रम: स्वतंत्रता के बाद विस्थापितों के पुनर्वास पर ध्यान।
प्रमुख तथ्य:
- योजना का कुल व्यय: 2069 करोड़ रुपये।
- GDP वृद्धि दर: 3.6% (लक्ष्य से अधिक)।
- कृषि उत्पादन में वृद्धि: खाद्य अनाज उत्पादन में 20% की वृद्धि।
चुनौतियाँ:
- औद्योगिक विकास पर कम ध्यान, क्योंकि प्राथमिकता कृषि को दी गई।
- जमींदारी प्रथा की समाप्ति शुरू हुई, लेकिन भूमि सुधार धीमे रहे।
परीक्षा-उन्मुख बिंदु:
- प्रथम योजना को कृषि-प्रधान योजना कहा जाता है।
- यह भारत की पहली नियोजित विकास की कोशिश थी, जो स्वतंत्रता के बाद की आर्थिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण थी।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-1961)
उद्देश्य:
- भारी उद्योगों और औद्योगीकरण पर जोर।
- आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम उठाना।
आर्थिक मॉडल:
- महलनोबिस मॉडल (प्रो. पी.सी. महलनोबिस द्वारा प्रस्तावित), जो पूँजीगत वस्तुओं (जैसे मशीनरी) के उत्पादन पर केंद्रित था।
प्रमुख उपलब्धियाँ:
SAIL (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड):
- 1950 और 1960 के दशक में भिलाई, राउरकेला, और दुर्गापुर में इस्पात संयंत्र स्थापित किए गए। ये संयंत्र द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) के तहत महलनोबिस मॉडल का हिस्सा थे, जो भारी उद्योगों पर केंद्रित था।
- भिलाई संयंत्र (सोवियत सहायता), राउरकेला (जर्मन सहायता), और दुर्गापुर (ब्रिटिश सहायता) ने भारत को इस्पात उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया।
BHEL (भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड):
- 1964 में स्थापित, BHEL ने बिजली उत्पादन उपकरण, जैसे टरबाइन और जनरेटर, का निर्माण शुरू किया। यह ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम था।
ONGC (ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन):
- 1956 में स्थापित, ONGC ने तेल और प्राकृतिक गैस की खोज और उत्पादन में योगदान दिया। इसने भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत किया और आयातित तेल पर निर्भरता कम की।
- परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम: परमाणु अनुसंधान के लिए भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) की स्थापना।
प्रमुख तथ्य:
- योजना का कुल व्यय: 4672 करोड़ रुपये।
- GDP वृद्धि दर: 4.1% (लक्ष्य से कम, लेकिन प्रगति)।
- औद्योगिक उत्पादन में 25% की वृद्धि।
चुनौतियाँ:
- विदेशी मुद्रा संकट (1957): आयात पर निर्भरता के कारण भुगतान संतुलन में कमी।
- कृषि क्षेत्र पर कम ध्यान, जिससे खाद्य संकट की आशंका बढ़ी।
तृतीय पंचवर्षीय योजना (1961-1966)
उद्देश्य:
- आत्मनिर्भरता और संतुलित आर्थिक विकास।
- कृषि और उद्योग के बीच संतुलन स्थापित करना।
प्रमुख उपलब्धियाँ:
- IIT और IIM की स्थापना: तकनीकी और प्रबंधन शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए।
- खाद्य उत्पादन पर ध्यान: हरित क्रांति की शुरुआत की नींव।
- रक्षा क्षेत्र में निवेश: राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए।
प्रमुख तथ्य:
- योजना का कुल व्यय: 8577 करोड़ रुपये।
- GDP वृद्धि दर: 2.8% (लक्ष्य 5.6% था)।
चुनौतियाँ:
- 1962 का भारत-चीन युद्ध: रक्षा व्यय बढ़ा, जिसने योजना के संसाधनों को प्रभावित किया।
- 1965 का भारत-पाक युद्ध: आर्थिक संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव।
- सूखा (1965-66): खाद्य संकट और आयात पर निर्भरता बढ़ी।
परीक्षा-उन्मुख बिंदु:
- तृतीय योजना को असफल योजना माना जाता है, क्योंकि बाहरी और प्राकृतिक आपदाओं ने इसके लक्ष्यों को प्रभावित किया।
- यह योजना आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकी,
योजना अवकाश (1966-1969)
उद्देश्य:
- कोई औपचारिक पंचवर्षीय योजना नहीं थी; इसके बजाय तीन वार्षिक योजनाएँ लागू की गईं।
- खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता पर ध्यान।
प्रमुख उपलब्धियाँ:
- हरित क्रांति की शुरुआत: उच्च उपज वाली किस्मों (HYV) के बीजों का उपयोग शुरू हुआ।
- खाद्य आयात पर नियंत्रण: खाद्य अनाजों के आयात को कम करने का प्रयास।
- कृषि सुधार: सिंचाई और उर्वरक उपयोग को बढ़ावा।
प्रमुख तथ्य:
- वार्षिक योजनाएँ: 1966-67, 1967-68, और 1968-69।
- विदेशी मुद्रा संकट (1966): भारत को IMF से सहायता लेनी पड़ी।
चुनौतियाँ:
- लगातार सूखा और खाद्य संकट।
- युद्धों के कारण आर्थिक संसाधनों की कमी।
परीक्षा-उन्मुख बिंदु:
- योजना अवकाश को आर्थिक संकट का दौर माना जाता है।
- यह हरित क्रांति की शुरुआत का समय था।
चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-1974)
उद्देश्य:
- गरीबी उन्मूलन और आर्थिक स्थिरता।
- आत्मनिर्भरता और सामाजिक समानता को बढ़ावा देना।
प्रमुख उपलब्धियाँ:
- बैंकों का राष्ट्रीयकरण (1969): 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण, जिसने ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग और ऋण सुविधाएँ बढ़ाईं।
- हरित क्रांति का विस्तार: गेहूँ और चावल के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि।
- MRTP अधिनियम (1969): एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथाओं को रोकने के लिए।
प्रमुख तथ्य:
- योजना का कुल व्यय: 15,902 करोड़ रुपये।
- GDP वृद्धि दर: 3.3% (लक्ष्य 5.7% था)।
- गरीबी हटाओ नारा: इंदिरा गांधी द्वारा शुरू।
चुनौतियाँ:
- 1971 का भारत-पाक युद्ध: रक्षा व्यय ने योजना को प्रभावित किया।
- तेल संकट (1973): वैश्विक तेल कीमतों में वृद्धि से मुद्रास्फीति बढ़ी।
पंचम पंचवर्षीय योजना (1974-1979)
उद्देश्य:
- गरीबी हटाओ और आत्मनिर्भरता।
- सामाजिक कल्याण और आर्थिक समानता पर जोर।
प्रमुख उपलब्धियाँ:
- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम: शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, और ग्रामीण बुनियादी ढांचे पर ध्यान।
- ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम: गरीबी और बेरोजगारी कम करने के लिए।
- ISRO का विकास: 1975 में पहला उपग्रह आर्यभट्ट लॉन्च।
प्रमुख तथ्य:
- योजना का कुल व्यय: 39,426 करोड़ रुपये।
- GDP वृद्धि दर: 4.8% (लक्ष्य से बेहतर)।
- आपातकाल (1975-1977): इंदिरा गांधी द्वारा लागू, जिसने योजना के कार्यान्वयन को प्रभावित किया।
चुनौतियाँ:
- आपातकाल ने आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता को प्रभावित किया।
- मुद्रास्फीति और तेल संकट (1973) के प्रभाव बने रहे।
छठी पंचवर्षीय योजना (1980-1985)
उद्देश्य:
- बुनियादी ढांचे का विकास और आधुनिकीकरण।
- ग्रामीण विकास और रोजगार सृजन।
प्रमुख उपलब्धियाँ:
- ग्रामीण विकास: एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP) शुरू।
- ऊर्जा और परिवहन: बिजली उत्पादन और रेलवे नेटवर्क का विस्तार।
- SLV-3 का सफल प्रक्षेपण (1980): रोहिणी उपग्रह लॉन्च, जिसने भारत को अंतरिक्ष शक्ति बनाया।
- बैंकों का दूसरा राष्ट्रीयकरण (1980): 6 और बैंकों का राष्ट्रीयकरण।
प्रमुख तथ्य:
- योजना का कुल व्यय: 97,500 करोड़ रुपये।
- GDP वृद्धि दर: 5.5% (लक्ष्य के करीब)।
चुनौतियाँ:
- राजकोषीय घाटा और मुद्रास्फीति की समस्या।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी सीमित रही।
सप्तम पंचवर्षीय योजना (1985-1990)
उद्देश्य:
- उत्पादकता और रोजगार वृद्धि।
- निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन और तकनीकी विकास।
प्रमुख उपलब्धियाँ:
- निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन: लाइसेंस राज में कुछ ढील दी गई।
- निर्यात वृद्धि: वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ी।
- तकनीकी विकास: सूचना प्रौद्योगिकी और दूरसंचार क्षेत्र में प्रगति।
- ग्रामीण विद्युतीकरण: गाँवों में बिजली की पहुँच बढ़ी।
प्रमुख तथ्य:
- योजना का कुल व्यय: 1,80,000 करोड़ रुपये।
- GDP वृद्धि दर: 5.8% (सर्वाधिक इस अवधि में)।
चुनौतियाँ:
- विदेशी मुद्रा संकट (1990-91): व्यापार घाटा और तेल की कीमतों में वृद्धि।
- सार्वजनिक उपक्रमों के घाटे की समस्या।
परीक्षा-उन्मुख बिंदु:
- सप्तम योजना को उदारीकरण की शुरुआत माना जाता है, जो 1991 के सुधारों की नींव बनी।
हरित क्रांति
- हरित क्रांति 1960 के दशक में शुरू हुई, जिसने भारत को खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया। यह चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-74) के दौरान अपने चरम पर थी।
प्रमुख विशेषताएँ:
- उच्च उपज वाली किस्में (HYV): गेहूँ और चावल की HYV किस्मों का उपयोग, जो अधिक उत्पादन देती थीं।
- रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक: उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग ने फसल उत्पादकता बढ़ाई।
- सिंचाई सुविधाएँ: नहरों और ट्यूबवेल्स के माध्यम से सिंचाई का विस्तार हुआ।
प्रमुख योगदानकर्ता:
- डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन: भारत में हरित क्रांति के जनक, जिन्होंने HYV बीजों और आधुनिक कृषि तकनीकों को बढ़ावा दिया।
- नॉर्मन बोरलॉग: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर HYV गेहूँ के विकास में योगदान दिया।
प्रभाव:
- गेहूँ और चावल का उत्पादन कई गुना बढ़ा। उदाहरण: 1965-66 में गेहूँ उत्पादन 10 मिलियन टन था, जो 1970-71 तक 23 मिलियन टन हो गया।
- भारत खाद्य आयात पर निर्भरता से मुक्त हुआ और 1970 के दशक तक खाद्य निर्यातक बन गया।
- पंजाब, हरियाणा, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता में भारी वृद्धि हुई।
चुनौतियाँ:
- क्षेत्रीय असमानता: हरित क्रांति का लाभ मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक सीमित रहा। बिहार, ओडिशा जैसे क्षेत्रों में कम प्रभाव पड़ा।
- पर्यावरणीय समस्याएँ: रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता और जल स्तर में कमी आई।
- सामाजिक असमानता: बड़े और मध्यम किसानों को अधिक लाभ हुआ, जबकि छोटे और सीमांत किसानों को कम फायदा मिला।
बैंकों का राष्ट्रीयकरण
1969 और 1980 में राष्ट्रीयकरण:
- 1969 में 14 प्रमुख बैंकों और 1980 में 6 अन्य बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।
उद्देश्य:
- ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार।
- प्राथमिकता क्षेत्रों (कृषि, लघु उद्योग) को ऋण उपलब्ध कराना।
- सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देना।
प्रभाव:
- ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक शाखाओं की संख्या बढ़ी।
- गरीबों और किसानों को ऋण उपलब्धता में वृद्धि।
- लेकिन गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) में वृद्धि और बैंकिंग दक्षता में कमी।
औद्योगिक नीति
औद्योगिक नीति 1956:
उद्योगों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया:
- अनुसूची A: केवल सार्वजनिक क्षेत्र के लिए (जैसे रक्षा, भारी उद्योग)।
- अनुसूची B: सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों के लिए।
- अनुसूची C: निजी क्षेत्र के लिए।
- लाइसेंस राज की शुरुआत, जिसके तहत उद्योग शुरू करने के लिए सरकार से लाइसेंस लेना अनिवार्य था।
प्रभाव:
- भारी उद्योगों का विकास हुआ, लेकिन नौकरशाही और भ्रष्टाचार बढ़ा।
- निजी क्षेत्र की स्वतंत्रता सीमित हुई।
MRTP अधिनियम 1969:
- एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथाओं को रोकने के लिए लागू।
- बड़े औद्योगिक घरानों पर नियंत्रण।
प्रमुख संस्थान:
IIT (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान):
- 1950 के दशक में शुरू, पहला IIT खड़गपुर (1951) में स्थापित हुआ।
- बाद में IIT बॉम्बे (1958), मद्रास (1959), कानपुर (1959), और दिल्ली (1961) स्थापित हुए।
- उद्देश्य: इंजीनियरिंग और तकनीकी शिक्षा में उत्कृष्टता, अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना।
- प्रभाव: IITs ने विश्वस्तरीय इंजीनियर और वैज्ञानिक तैयार किए, जो भारत और विदेशों में तकनीकी क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं।
IIM (भारतीय प्रबंधन संस्थान):
- पहला IIM कलकत्ता (1961) और IIM अहमदाबाद (1961) में स्थापित हुआ।
- उद्देश्य: प्रबंधन शिक्षा और नेतृत्व विकास को बढ़ावा देना।
- प्रभाव: IIMs ने भारत में प्रबंधन पेशेवरों की एक नई पीढ़ी तैयार की, जिसने कॉर्पोरेट और सार्वजनिक क्षेत्र में योगदान दिया।
ISRO (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन):
- 1969 में स्थापित, लेकिन इसकी नींव 1962 में INCOSPAR (Indian National Committee for Space Research) के रूप में पड़ी।
- उद्देश्य: अंतरिक्ष अनुसंधान, उपग्रह प्रक्षेपण, और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास।
- प्रभाव:
- 1975 में पहला उपग्रह आर्यभट्ट लॉन्च किया गया।
- 1980 में SLV-3 के माध्यम से रोहिणी उपग्रह लॉन्च, जिसने भारत को अंतरिक्ष शक्ति बनाया।
- मौसम, संचार, और रिमोट सेंसिंग में उपग्रहों का उपयोग बढ़ा।
1991 का आर्थिक संकट
कारण:
- उच्च व्यापार घाटा और विदेशी मुद्रा भंडार में कमी।
- खाड़ी युद्ध (1990-91) के कारण तेल की कीमतों में वृद्धि।
- राजकोषीय घाटा और सार्वजनिक ऋण में वृद्धि।
परिणाम:
- भारत को IMF और विश्व बैंक से ऋण लेना पड़ा।
- आर्थिक सुधारों की शुरुआत (उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण)।
महत्व:
- 1991 का संकट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक टर्निंग पॉइंट था, जिसने नियोजित अर्थव्यवस्था से मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाया।