वर्ष 2014 के पश्चात् भारत में प्रमुख आर्थिक सुधार: एक विस्तृत विश्लेषण

वर्ष 2014 के पश्चात् भारत ने आर्थिक विकास को गति देने और देश को वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। इन सुधारों का लक्ष्य न केवल मैक्रो-इकोनॉमिक फंडामेंटल्स को मजबूत करना था, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में संरचनात्मक बाधाओं को दूर कर समावेशी और सतत विकास को बढ़ावा देना भी था।

वर्ष 2014 के पश्चात् भारत में प्रमुख आर्थिक सुधार

2014 से पहले की आर्थिक स्थिति और सुधारों की आवश्यकता

2014 से पहले, भारतीय अर्थव्यवस्था धीमी विकास दर, उच्च मुद्रास्फीति और उत्पादन में कमी जैसी चुनौतियों का सामना कर रही थी । इस अवधि में बिजली आपूर्ति व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता महसूस की गई, क्योंकि इनवर्टर की व्यापक आवश्यकता इस बात का प्रमाण थी कि बिजली की उपलब्धता एक चुनौती थी । बेरोजगारी देश के लिए एक गंभीर मुद्दा बनी हुई थी, जिसके समाधान के लिए अधिक रोजगार सृजन योजनाओं और कौशल विकास कार्यक्रमों पर जोर देने की उम्मीद थी । वित्तीय क्षेत्र में भी सुधारों की आवश्यकता थी, जबकि कृषि क्षेत्र संरचनात्मक मुद्दों से जूझ रहा था, जिससे किसानों की आय और उत्पादकता प्रभावित हो रही थी ।  

2014 के बाद की सरकार के आर्थिक सुधारों का व्यापक दृष्टिकोण और लक्ष्य

नई सरकार ने इन चुनौतियों का समाधान करने और अर्थव्यवस्था को एक तेज रफ्तार विकास पथ पर लाने के लिए एक व्यापक सुधार एजेंडा अपनाया । इस एजेंडे के तहत, भारत की जीडीपी विकास दर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई, जो 7.4% तक पहुंच गई, जो दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक थी । इस मजबूत आर्थिक बुनियाद और सुधारों के परिणामस्वरूप, मूडीज ने भारत की रेटिंग को ‘स्टेबल’ से ‘पॉजिटिव’ में अपग्रेड कर दिया । इसके अतिरिक्त, भारत को ब्रिक्स देशों के बीच ‘ग्रोथ इंजन’ के रूप में मान्यता मिली, जो इसकी बढ़ती आर्थिक शक्ति को दर्शाता है ।  

थोक कीमतों पर आधारित महंगाई (WPI) में भी तेज गिरावट देखी गई, जो अप्रैल 2014 में 5.55% से घटकर अप्रैल 2015 में -2.65% हो गई । प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रवाह में ऐतिहासिक वृद्धि दर्ज की गई, जो अर्थव्यवस्था में बढ़ते वैश्विक विश्वास का संकेत था । राजकोषीय घाटे में लगातार गिरावट आई और विदेशी मुद्रा भंडार में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई, जिससे वैश्विक आर्थिक उठा-पटक की स्थिति में भारत को जोखिम से बचने में मदद मिली । सरकार ने व्यापार एवं वाणिज्य से संबंधित नियमों को आसान बनाने पर भी जोर दिया, ताकि व्यापार तेजी से बढ़ सके । इन सुधारों का एक महत्वपूर्ण परिणाम ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ रैंकिंग में भारत का उल्लेखनीय सुधार था, जिसने निवेश के लिए अधिक अनुकूल वातावरण तैयार किया । इन व्यापक सुधारों का उद्देश्य 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर होना भी था ।   

मैक्रो-इकोनॉमिक स्थिरता पर सरकार का प्रारंभिक ध्यान 2014 के बाद के सुधारों की सफलता का एक महत्वपूर्ण आधार बना। उच्च मुद्रास्फीति और अस्थिर विकास दर निवेश और दीर्घकालिक नियोजन के लिए प्रतिकूल माहौल बनाती है। इस स्थिरता के बिना, ढांचागत परियोजनाएं महंगी हो जाती हैं, और निजी क्षेत्र का विश्वास कम होता है। जीडीपी वृद्धि, मुद्रास्फीति नियंत्रण, राजकोषीय घाटा कम करना और विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाना जैसे मैक्रो-इकोनॉमिक संकेतकों में सुधार ने एक स्थिर नींव प्रदान की। इस स्थिरता ने ही बाद में अन्य संरचनात्मक सुधारों, जैसे एफडीआई में वृद्धि और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार, को प्रभावी ढंग से लागू करने में सहायता की। यह दर्शाता है कि व्यापक आर्थिक स्थिरता किसी भी बड़े पैमाने के संरचनात्मक सुधारों के लिए एक पूर्व शर्त है, जिससे नीतिगत निर्णयों की प्रभावशीलता बढ़ जाती है और निवेशकों का विश्वास मजबूत होता है।

 कृषि सुधार

भारत में कृषि क्षेत्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और 2014 के बाद से इस क्षेत्र में व्यापक सुधारों की शुरुआत की गई है, जिसका मुख्य उद्देश्य किसानों की आय को दोगुना करना और कृषि को अधिक लाभदायक एवं टिकाऊ बनाना है । 

किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य और रणनीति

28 फरवरी 2016 को प्रधानमंत्री ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा । इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, ‘सात सूत्रीय’ रणनीति का आह्वान किया गया, जिसमें सिंचाई सुविधाओं का विस्तार (‘प्रति बूंद अधिक फसल’), मिट्टी की गुणवत्ता के अनुसार गुणवान बीज और पोषक तत्वों का प्रावधान, कटाई के बाद फसल नुकसान को रोकने के लिए गोदामों और कोल्डचेन में बड़ा निवेश, खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से मूल्य संवर्धन को प्रोत्साहन, राष्ट्रीय कृषि बाज़ार का क्रियान्वयन (ई-प्लेटफॉर्म की शुरुआत), जोखिम को कम करने के लिए कम कीमत पर फसल बीमा योजना की शुरुआत, और डेयरी-पशुपालन, मुर्गी-पालन, मधुमक्खी-पालन, बागवानी व मछली पालन जैसी सहायक गतिविधियों को बढ़ावा देना शामिल है । 

प्रमुख योजनाएँ और पहलें

सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई योजनाएं और पहलें शुरू की हैं:

  • प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान): यह योजना किसानों को प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता प्रदान करती है, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है और कृषि इनपुट खरीदने की उनकी क्षमता बढ़ती है

  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई): यह योजना किसानों को फसल के नुकसान की आशंका को कम करने और उनकी आय में सुधार करने में मदद करती है, जिससे टिकाऊ कृषि को बढ़ावा मिलता है ।

  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) योजना: इस योजना के तहत मृदा स्वास्थ्य कार्ड का वितरण किया जाता है, जिससे किसान अपनी मिट्टी की गुणवत्ता के अनुसार सही बीज और पोषक तत्वों का उपयोग कर सकें, जिससे उत्पादकता में सुधार हो ।

  • ई-नाम (e-NAM): राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) कृषि वस्तुओं के लिए एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है । यह मौजूदा कृषि उपज बाजार समिति (APMC) बाजारों को एक ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से एकीकृत करता है । 

  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई): 2015 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य सिंचाई में निवेश में एकरूपता लाना, ‘हर खेत को पानी’ के तहत कृषि योग्य क्षेत्र का विस्तार करना, और खेतों में जल के उपयोग की दक्षता बढ़ाना है, ताकि पानी के अपव्यय को कम किया जा सके (‘हर बूंद अधिक फसल’) । यह योजना बूंद-बूंद (टपका) और छिड़काव सिंचाई जैसी तकनीकों को अपनाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है ।   

  • किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) में सुधार: केसीसी योजना में ऋण सीमा को 3 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया गया है । 2019 में, इस योजना को पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन से जुड़ी गतिविधियों की कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विस्तारित किया गया । 31 दिसंबर 2024 तक, 7.72 करोड़ किसानों को लाभ हुआ और चालू केसीसी खातों के तहत राशि 10 लाख करोड़ रुपये को पार कर गई ।

  • अन्य योजनाएं: प्रधानमंत्री किसान मान-धन योजना (पीएम-केएमवाई), प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा), राष्ट्रीय बांस मिशन, राष्ट्रीय गोकुल मिशन, नीली क्रांति (मत्स्यिकी विकास), राष्ट्रीय पशुधन मिशन, डेयरी प्रसंस्करण एवं अवसंरचना निधि, कृषि कल्याण अभियान, पंडित दीन दयाल उपाध्याय उन्नत कृषि शिक्षा योजना (PDDUUKSY), मिशन अमृत सरोवर, और राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन (एनबीएचएम) जैसी कई अन्य योजनाएं भी शुरू की गई हैं ।   

तालिका 1: प्रमुख कृषि योजनाएँ और उनका उद्देश्य

योजना का नाममुख्य उद्देश्य
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान)किसानों को प्रत्यक्ष आय सहायता प्रदान करना।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई)फसल नुकसान के जोखिम को कम करना और किसानों की आय को स्थिर करना।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) योजनामिट्टी की उर्वरता में सुधार के लिए मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर पोषक तत्वों की सिफारिश करना।
ई-नाम (e-NAM)कृषि वस्तुओं के लिए एक एकीकृत राष्ट्रीय ऑनलाइन बाजार बनाना, पारदर्शिता बढ़ाना।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई)सिंचाई कवरेज का विस्तार करना और जल उपयोग दक्षता में सुधार करना (‘हर बूंद अधिक फसल’)।
किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी)किसानों को समय पर और किफायती ऋण प्रदान करना, जिसमें पशुपालन और मत्स्य पालन भी शामिल है।
राष्ट्रीय बांस मिशनबांस की खेती और उपयोग को बढ़ावा देना।
नीली क्रांतिमत्स्यिकी क्षेत्र का समेकित विकास और प्रबंधन।
राष्ट्रीय पशुधन मिशनपशुधन क्षेत्र का सतत विकास और गुणवत्तापूर्ण आहार व चारे की उपलब्धता में सुधार।
प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा)किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करना।

वास्तविक प्रगति, प्रभाव और चुनौतियाँ

कृषि क्षेत्र में इन सुधारों के परिणामस्वरूप, भारतीय कृषि कोविड-19 के झटके का सामना कर सकी और 2020-21 में 3.6% की औसत वास्तविक वृद्धि दर्ज की, जबकि समग्र अर्थव्यवस्था में कमी आई । कृषि निर्यात में भी 2020-21 में 17.1% की रिकॉर्ड वृद्धि हुई । सिंचाई कवरेज में लगातार वृद्धि हुई है, जिससे उच्च उत्पादकता और सूखे के प्रति कम संवेदनशीलता में मदद मिली है । कृषि मशीनीकरण में कृषि उत्पादकता को 30% तक बढ़ाने और इनपुट लागत को 20% तक कम करने की क्षमता है ।  

हालांकि, चुनौतियां भी बनी हुई हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2021 में कुछ बुनियादी चुनौतियों को रेखांकित किया गया है, जैसे प्रभावी जल संरक्षण तंत्र सुनिश्चित करते हुए सिंचाई सुविधाओं का और विस्तार । कृषि ऋण के क्षेत्र में व्याप्त क्षेत्रीय वितरण की विषमता को संबोधित करने के लिए एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है । भारत में छोटी और सीमांत जोतों का अनुपात काफी बड़ा है, ऐसे में भूमि बाजार के उदारीकरण जैसे भूमि सुधार उपायों से किसानों को अपनी आय में सुधार करने में सहायता मिल सकती है । संबद्ध क्षेत्रों जैसे पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन को और बढ़ावा देने की आवश्यकता है ताकि कृषि से जुड़े लोगों के लिए रोजगार और आय का एक सुनिश्चित द्वितीयक स्रोत प्रदान किया जा सके । भारत में कृषि मशीनीकरण का स्तर अभी भी कम है (मात्र 40%) । खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में सुधार भी महत्वपूर्ण है ताकि कटाई के बाद के नुकसान को कम किया जा सके और कृषि उत्पादों के लिए अतिरिक्त बाजार बनाए जा सकें । कृषि को एक अधिक लाभदायक आर्थिक गतिविधि बनाने के लिए इसका व्यवसायीकरण आवश्यक है, क्योंकि कई किसान अभी भी केवल अपने परिवारों का भरण-पोषण करने में ही सक्षम हैं ।  

 ढांचागत सुधार

बुनियादी ढांचा किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास की रीढ़ होता है। 2014 के बाद से, भारत ने बुनियादी ढांचे के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है, जिसका उद्देश्य आर्थिक उत्पादकता बढ़ाना, रसद लागत कम करना और सेवा वितरण का विस्तार करना है ।

बुनियादी ढाँचे के विकास का महत्व और उद्देश्य

राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य भारत में बुनियादी ढांचे के विकास और उन्नयन के माध्यम से 2025 तक देश को 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना है । इसका लक्ष्य बुनियादी ढांचे की कमियों को दूर करना, शहरीकरण की प्रक्रिया को सुगम बनाना, और नागरिकों को विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचा प्रदान करके उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है । यह सरकार के तीनों स्तरों पर बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण निजी निवेश के लिए एक सकारात्मक और सक्षम वातावरण प्रदान करने, सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को दक्षता, समानता और समावेशी लक्ष्यों के साथ डिजाइन, वितरित और बनाए रखने पर केंद्रित है ।

प्रमुख परियोजनाएँ और पहलें

  • पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान (एनएमपी): 2021 में शुरू की गई यह योजना रेलवे और रोडवेज सहित विभिन्न मंत्रालयों को एक साथ लाकर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की एकीकृत योजना और समन्वित निष्पादन सुनिश्चित करती है । इसका लक्ष्य परिवहन के विभिन्न साधनों में लोगों, वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही के लिए निर्बाध और कुशल कनेक्टिविटी प्रदान करना है, जिससे अंतिम मील की कनेक्टिविटी बढ़े और यात्रा का समय कम हो । 

  • राजमार्ग और सड़कें: भारत में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क है। राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लंबाई 2014 में 91,287 किमी से बढ़कर 2024 में 1,46,145 किमी हो गई है । चार या अधिक लेन वाले राष्ट्रीय राजमार्ग खंडों की लंबाई 2014 में 18,371 किमी से 2.6 गुना बढ़कर 2024 में 48,422 किमी हो गई । राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण की गति 2014-15 में 12.1 किमी/दिन से 2.8 गुना बढ़कर 2023-24 में 33.8 किमी/दिन हो गई ।  

  • भारतमाला परियोजना: 2017 में शुरू की गई यह परियोजना 34,800 किलोमीटर राजमार्गों के विकास की परिकल्पना करती है, जिसमें आर्थिक गलियारे, फीडर कॉरिडोर और इंटर कॉरिडोर शामिल हैं । इसका उद्देश्य पूरे देश में सड़क संपर्क में सुधार, कार्गो की त्वरित आवाजाही में वृद्धि, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि और रोजगार सृजन को बढ़ावा देना है । नवंबर 2024 तक, परियोजना के तहत कुल 18,926 किलोमीटर सड़कें पूरी हो चुकी हैं ।  
  • प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (पीएमजीएसवाई): 2000 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य असंबद्ध बस्तियों को संपर्क प्रदान करना है। 2014-15 में 4,19,358 किलोमीटर सड़कें पूरी की गईं, और 2024-25 में यह संख्या बढ़कर 7,71,950 किलोमीटर हो गई ।  
  • नागरिक उड्डयन: भारत का विमानन क्षेत्र तेज़ी से बढ़ रहा है और दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाजार बन गया है  2014 में भारत में परिचालन हवाई अड्डों की संख्या 74 थी, जो सितंबर 2024 तक बढ़कर 157 हो गई ।  

  • क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना (आरसीएस) – उड़ान: 2016 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य हवाई यात्रा को अधिक किफायती और व्यापक बनाना है, जिससे टियर II और टियर III शहरों को हवाई सेवा से जोड़ा जा सके । 31 दिसंबर 2024 तक, इस योजना का लाभ 147.53 लाख यात्रियों ने उठाया है, और 619 आरसीएस मार्गों पर परिचालन शुरू हो चुका है ।  

शिपिंग और बंदरगाह: भारत में 12 सरकारी स्वामित्व वाले प्रमुख बंदरगाह और लगभग 217 छोटे और मध्यवर्ती बंदरगाह हैं । कार्गो हैंडलिंग क्षमता 2014 में 800.5 मिलियन टन प्रति वर्ष से बढ़कर 2024 में 1,630 मिलियन टन प्रति वर्ष हो गई है ।  

  • सागरमाला परियोजना: यह योजना देश में बंदरगाह-आधारित विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत की 7500 किमी लंबी तटरेखा और संभावित रूप से नौवहन योग्य 14500 किमी जलमार्गों का उपयोग करती है । इसमें बंदरगाह आधुनिकीकरण, बंदरगाह संपर्क, बंदरगाह आधारित औद्योगिकीकरण, तटीय सामुदायिक विकास और तटीय शिपिंग एवं अंतर्देशीय जल परिवहन शामिल हैं । मंत्रालय ने अब तक सागरमाला योजना के अंतर्गत आंशिक वित्तपोषण के लिए  की हैं, जिनमें से 72 पूरी हो चुकी हैं  

    रेलवे का आधुनिकीकरण: भारतीय रेलवे ने 4 नवंबर 2024 को एक दिन में 3 करोड़ से ज़्यादा यात्रियों को ले जाकर ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की । लिंके-हॉफमैन-बुश (एलएचबी) कोचों का विनिर्माण 2006-2014 में 2,209 कोचों से बढ़कर 2014-2023 में 31,956 कोचों तक पहुंच गया है । 2014 के बाद चार राज्यों मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और मिजोरम को रेल संपर्क प्रदान किया गया । 2014 से पहले 123 स्टेशनों पर सीसीटीवी थे, जो 2024 तक बढ़कर 1051 हो गए ।

  • शहरी विकास:

    • स्मार्ट सिटीज मिशन (एससीएम): कुल 8,076 परियोजनाएं हैं, जिनमें से 7,401 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं ।

    • स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0: शहरी अपशिष्ट संग्रह में 2014-15 से 2024-25 तक 97% की वृद्धि हुई है। अपशिष्ट प्रसंस्करण प्रतिशत 2014-15 में 18% से बढ़कर 2024-25 में 78% हो गया है । 

    • प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (पीएमएवाई-यू): 2015-2024 में 118.64 लाख घरों को मंजूरी दी गई, और 88.32 लाख मकान पूरे किए गए ।

    • मेट्रो रेल: कुल परिचालन मेट्रो रेल नेटवर्क 2014 तक 248 किमी से बढ़कर 2014-24 में 993 किमी हो गया । परिचालन मेट्रो रेल वाले कुल शहर 5 से बढ़कर 23 हो गए 。

    • जल जीवन मिशन (जेजेएम): 15 अगस्त, 2019 को लॉन्च किया गया, इसका उद्देश्य हर ग्रामीण घर में नल का पानी उपलब्ध कराना है। 1 फरवरी, 2025 तक, कुल कवरेज 15.44 करोड़ से अधिक घरों तक पहुंच गई है, जो भारत के सभी ग्रामीण घरों का 79.74% है 。

विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति और निवेश के आँकड़े

बुनियादी ढांचे में बड़े पैमाने पर निवेश और तीव्र प्रगति ने भारत की आर्थिक वृद्धि को सीधे तौर पर प्रभावित किया है। बेहतर सड़कें, हवाई अड्डे, बंदरगाह और रेलवे नेटवर्क वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही को अधिक कुशल बनाते हैं, जिससे लॉजिस्टिक्स लागत कम होती है और व्यवसायों के लिए बाजार पहुंच बढ़ती है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण की गति में उल्लेखनीय वृद्धि और हवाई अड्डों की संख्या का दोगुना होना सीधे तौर पर व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा देता है। पीएम गति शक्ति जैसे एकीकृत योजना मॉडल ने विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय को बेहतर बनाया है, जिससे परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेजी आई है और संसाधनों का बेहतर उपयोग हुआ है । यह समग्र दृष्टिकोण न केवल भौतिक संपर्क का विस्तार करता है, बल्कि आर्थिक उत्पादकता को भी बढ़ाता है, रसद लागत को कम करता है और सेवा वितरण का विस्तार करता है ।

तालिका 2: ढांचागत विकास में प्रमुख उपलब्धियाँ (2014-2024)

क्षेत्र2014 में स्थिति2024 में स्थितिवृद्धि/उपलब्धि
राष्ट्रीय राजमार्ग (किमी)91,2871,46,145

60% वृद्धि 

4+ लेन राष्ट्रीय राजमार्ग (किमी)18,37148,422

2.6 गुना वृद्धि   

राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण गति (किमी/दिन)12.1 (2014-15)33.8 (2023-24)

2.8 गुना वृद्धि   

परिचालन हवाई अड्डे74157

दोगुने से अधिक  

मेट्रो रेल नेटवर्क (किमी)248993

लगभग 4 गुना वृद्धि 

प्रमुख बंदरगाह कार्गो हैंडलिंग क्षमता (MMTPA)800.51,630

87% सुधार  

रेलवे CCTV स्टेशन1231051

8 गुना से अधिक वृद्धि  

ग्रामीण सड़क निर्माण (किमी)4,19,358 (2014-15)7,71,950 (2024-25)

महत्वपूर्ण वृद्धि  

अपशिष्ट प्रसंस्करण प्रतिशत18% (2014-15)78% (2024-25)

4 गुना से अधिक वृद्धि  

 श्रम-सुधार

भारत में श्रम कानूनों में सुधार का उद्देश्य श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करना, सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करना और व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देना है। 2014 के बाद, सरकार ने कई पुराने श्रम कानूनों को चार व्यापक संहिताओं में समेकित करने का प्रयास किया है ।

श्रम कानूनों में सुधार की आवश्यकता और उद्देश्य

भारत में श्रम कानून ब्रिटिश राज के समय से चले आ रहे कई नियमों के अधीन थे, जो जटिल और बिखरे हुए थे । इन कानूनों में सुधार की आवश्यकता महसूस की गई ताकि व्यापार करने में आसानी हो, रोजगार सृजन को बढ़ावा मिले और श्रमिकों के लिए बेहतर कार्य परिस्थितियाँ सुनिश्चित की जा सकें । मुख्य उद्देश्य श्रमिकों के सभी वर्गों को न्यूनतम मजदूरी का प्रावधान सुनिश्चित करना, समय पर मजदूरी का भुगतान करना, और सामाजिक सुरक्षा लाभों का सार्वभौमिकरण करना था ।

नई श्रम संहिताएँ

सरकार ने 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को चार व्यापक संहिताओं में समेकित किया है:

  • मजदूरी संहिता, 2019: यह संहिता मजदूरी और बोनस से संबंधित कानूनों को संशोधित और समेकित करती है । इसका उद्देश्य सभी श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करना, बिना किसी अनधिकृत कटौती के समय पर मजदूरी का भुगतान करना है । यह समान कार्य या वैसी ही प्रकृति के कार्य के लिए लिंग के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करती है । संहिता में न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण की हर पांच साल में समीक्षा का प्रावधान भी है ।

  • औद्योगिक संबंध संहिता, 2020: यह संहिता औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947, ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926 और औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) एक्ट, 1946 का स्थान लेती है । यह ट्रेड यूनियनों के पंजीकरण, नेगोशिएटिंग यूनियनों के प्रावधान, अनुचित श्रम व्यवहार पर प्रतिबंध, स्थायी आदेशों के निर्माण, परिवर्तन संबंधी नोटिस, कामबंदी और छंटनी के नियमों को विनियमित करती है ।  

  • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020: इस संहिता का उद्देश्य संगठित/असंगठित क्षेत्रों के सभी कर्मचारियों और श्रमिकों को बीमारी, मातृत्व, विकलांगता आदि के दौरान सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना है । यह 9 मौजूदा श्रम कानूनों को एकीकृत करती है और गिग वर्कर्स, प्लेटफॉर्म वर्कर्स, और अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिकों सहित सभी पात्र कामगारों के लिए सामाजिक सुरक्षा का सार्वभौमिकरण करती है । इसमें जीवन और विकलांगता कवरेज, स्वास्थ्य और मातृत्व लाभ, वृद्धावस्था पेंशन आदि शामिल हैं ।

  • व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020 (OSH & WC): यह संहिता 13 अलग-अलग श्रम कानूनों को समाहित करती है और प्रतिष्ठानों में व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियों को नियमित करने वाले कानूनों को सरल बनाती है । इसमें नियोक्ताओं की लागत पर श्रमिकों के लिए अनिवार्य वार्षिक स्वास्थ्य जांच, महिलाओं को रात्रि की पाली में कार्य करने की अनुमति (उनकी सहमति से), और कामगार की सहमति के बिना कोई समयोपरि कार्य नहीं जैसे प्रावधान शामिल हैं ।  

प्रमुख प्रावधान, एकीकरण और श्रमिकों पर प्रभाव

इन संहिताओं का एकीकरण श्रम कानूनों को सरल और युक्तिसंगत बनाता है, जिससे अनुपालन का बोझ कम होता है और व्यापार करने में आसानी बढ़ती है । श्रमिकों के लिए, ये संहिताएं न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा और कार्यस्थल सुरक्षा के संदर्भ में अधिक सुरक्षा और लाभ प्रदान करती हैं । उदाहरण के लिए, न्यूनतम मजदूरी की कानूनी अधिकार की मांग को संबोधित किया गया है, और नियुक्ति पत्र जारी करना अनिवार्य बनाया गया है, जिससे श्रमिकों को कानूनी पहचान और रोजगार का प्रमाण मिलेगा । गिग और प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाना एक महत्वपूर्ण कदम है, जो बदलती कार्य प्रकृति के अनुकूल है 。

वस्तु एवं सेवा कर (GST)

वस्तु एवं सेवा कर (GST) भारत में 2017 में लागू किया गया एक महत्वपूर्ण अप्रत्यक्ष कर सुधार है, जिसका उद्देश्य देश को एक साझा राष्ट्रीय बाजार बनाना और कर प्रणाली को सरल बनाना था ।

जीएसटी का परिचय, उद्देश्य और संरचना

जीएसटी एक मूल्य वर्धित कर है जो विनिर्माता से लेकर उपभोक्ता तक वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर एक एकल कर है । इसका मुख्य उद्देश्य कर दरों और प्रक्रियाओं में समरूपता लाकर और आर्थिक बाधाओं को हटाकर भारत को एक साझा राष्ट्रीय बाजार बनाना है । जीएसटी ने सेल्स टैक्स जैसे कई छोटे करों को हटाकर एक एकीकृत कर व्यवस्था लागू की ।

जीएसटी की मुख्य विशेषताएं दोहरे जीएसटी मॉडल पर आधारित हैं, जिसमें केंद्र और राज्य दोनों मूल्य श्रृंखला में एक साथ जीएसटी लगाते हैं । इसमें केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST), राज्य वस्तु एवं सेवा कर (SGST), एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) और केंद्र शासित प्रदेश जीएसटी (UTGST) शामिल हैं । प्रत्येक चरण पर भुगतान किए गए इनपुट करों का लाभ मूल्य संवर्धन के बाद के चरण में उपलब्ध होता है, जिससे कर पर कर लगने का प्रभाव (कैस्केडिंग प्रभाव) समाप्त हो जाता है ।

लाभ:

  • कैस्केडिंग टैक्स प्रभाव का उन्मूलन: जीएसटी का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसने विभिन्न छोटे करों को समाप्त कर दिया है, जिससे कर पर कर लगने का प्रभाव खत्म हो गया है । 

  • बढ़ी हुई सीमा: जीएसटी लागू होने के बाद, व्यवसायों के लिए कर देयता की सीमा बढ़ाकर ₹20 लाख कर दी गई है, जिससे छोटे और मध्यम व्यवसायों को लाभ हुआ है ।

  • न्यूनतम अनुपालन: जीएसटी से पहले, व्यवसायों को विभिन्न प्रकार के करों के लिए अलग-अलग रिटर्न दाखिल करने पड़ते थे। अब केवल एक ही बार रिटर्न दाखिल करना होता है, जिससे अनुपालन की प्रक्रिया सरल हो गई है ।

  • कंपोजिशन स्कीम: ₹25 लाख से ₹75 लाख तक के वार्षिक कारोबार वाले व्यवसायों के लिए कंपोजिशन योजना का लाभ उपलब्ध है, जिससे उन्हें एक निश्चित दर पर जीएसटी का भुगतान करने की सुविधा मिलती है । सुचारू और त्वरित ऑनलाइन प्रक्रिया: जीएसटी के लिए आवेदन प्रक्रिया काफी सरल है और इसे ऑनलाइन किया जा सकता है, जिससे छोटे स्टार्टअप्स को विशेष रूप से लाभ होता है ।  

  • वेयरहाउसिंग की समस्या का समाधान: जीएसटी ने वेयरहाउस और लॉजिस्टिक्स कंपनियों को वेयरहाउस से संबंधित समस्याओं से छुटकारा दिलाया है, जिससे गोदाम स्थापित करने से संबंधित खर्चों में कमी आई है ।

  • ई-कॉमर्स ऑपरेटरों को ध्यान में रखता है: जीएसटी लागू होने के बाद, सभी ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए एक समान कर दर लागू होती है, चाहे वे किसी भी राज्य की हों, जिससे पहले की जटिलताएं समाप्त हो गई हैं 。

चुनौतियाँ:

  • संचालन की लागत: नए जीएसटी लागू होने के कारण व्यवसायों में संचालन की लागत थोड़ी बढ़ गई है, क्योंकि उन्हें जीएसटी-अनुपालन सॉफ्टवेयर और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है ।  

  • लघु और मध्यम व्यवसायों पर कर देयता: पहले, उत्पादन शुल्क ₹1.5 करोड़ से अधिक के कारोबार पर लगाया जाता था, लेकिन नए जीएसटी में, यदि उत्पादक व्यवसाय ₹40 लाख से अधिक का कारोबार करता है, तो उसे कर देना होगा, जिससे छोटे व्यवसायों पर कर का बोझ बढ़ा है ।

  • अनुपालन का बोझ: जीएसटी भरने की प्रक्रिया पंजीकरण, चालान भरने, दस्तावेज जमा करने और अन्य आवेदन प्रक्रियाओं के कारण काफी जटिल हो सकती है, जिससे अनुपालन का बोझ बढ़ जाता है 

  • जुर्माना: नए जीएसटी अपडेट के अनुसार, हर कंपनी को जीएसटी पोर्टल पर खुद को रजिस्टर करना होगा, और नियमों का पालन न करने पर जुर्माना भुगतना पड़ेगा, क्योंकि नियम अब अधिक सख्त हैं ।

अर्थव्यवस्था पर समग्र प्रभाव

जीएसटी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसने कर की दरें कम की हैं और बहु-बिंदु कराधान समाप्त कर दिया है, जिससे राजस्व में वृद्धि हुई है । एक समान कर प्रणाली ने भारत को एक एकीकृत बाजार में बदल दिया है, जिससे व्यापार, वाणिज्य और निर्यात को बढ़ावा मिला है । इन परिवर्तनों से आर्थिक विकास को गति मिली है और देश की जीडीपी में वृद्धि हुई है, विशेषज्ञों का अनुमान है कि जीएसटी के कारण जीडीपी में 1.5% से 2.5% तक वृद्धि हो सकती है । मजबूत आईटी बुनियादी ढांचा और मानवीय हस्तक्षेप में कमी से कर चोरी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद मिली है, जिससे एक अधिक पारदर्शी प्रणाली बनी है । एक स्थिर और पारदर्शी कर प्रणाली ने एक मजबूत कारोबारी माहौल को बढ़ावा दिया है, जो स्थानीय और विदेशी दोनों निवेशों को आकर्षित करता है ।

  • जीएसटी 101 वें संवैधानिक संशोधन एक्ट, 2016 के अंतर्गत लागू किया गया है।
  • सितंबर 2016 में भारत के राष्ट्रपति ने जीएसटी परिषद की स्थापना की।
  • भारत में GST को अनुच्छेद 279 के तहत विजय केलकर समिति के आधार पर लागू किया गया था।
  • GST लागू करने वाला पहला राज्य असम था।
  • GST लागू करने वाला प्रथम देश फ्रांस था जिसने वर्ष 1954 में इसे लागू किया।
  • भारत का जीएसटी मॉडल, कनाडा के मॉडल पर आधारित है।
  • वर्तमान में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन जीएसटी परिषद की अध्यक्ष हैं।
  • जीएसटी परिषद के शासी निकाय सदस्य कुल 33 लोग हैं।
  • भारत में GST में चार प्रकार की दरें शामिल है:- 5%, 12%, 18% एवं 28% ।

 अन्य महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार

2014 के बाद के आर्थिक सुधार केवल कृषि, बुनियादी ढांचे, श्रम और जीएसटी तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि इसमें डिजिटल सशक्तिकरण, वित्तीय क्षेत्र का सुदृढीकरण, व्यापार सुगमता में सुधार और विदेशी निवेश को बढ़ावा देना भी शामिल था।

डिजिटल इंडिया पहलें

डिजिटल इंडिया अभियान 1 जुलाई 2015 को शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य सभी भारतीय नागरिकों को इंटरनेट तक आसानी से पहुंच प्रदान करना और भारत को ज्ञान आधारित क्रांति के लिए तैयार करना था । इसका लक्ष्य डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना, डिजिटल विभाजन को पाटना, आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और नागरिकों के जीवन स्तर को उन्नत करना है ।

प्रमुख पहलों में शामिल हैं:

  • UPI (एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस): यह एक डिजिटल भुगतान प्रणाली है जिसने भारत में डिजिटल लेनदेन को क्रांतिकारी बना दिया है ।  

  • DBT (प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण): यह सरकारी योजनाओं के तहत सब्सिडी और लाभों को सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में हस्तांतरित करने में मदद करता है, जिससे रिसाव और भ्रष्टाचार कम होता है 

  • डिजिटल लॉकर: यह महत्वपूर्ण दस्तावेजों को सुरक्षित रूप से संग्रहीत करने और डिजिटल रूप से उन तक पहुंचने के लिए एक क्लाउड-आधारित प्लेटफॉर्म है ।

  • भीम यूपीआई: यह स्मार्टफोन का उपयोग करके सुरक्षित पीयर-टू-पीयर लेनदेन को सक्षम बनाता है ।   ई-नाम: कृषि बाजारों को जोड़ने वाला एक ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म ।   

  • आरोग्य सेतु, ई-संजीवनी, मेरी सरकार, दीक्षा ऐप: ये विभिन्न क्षेत्रों में डिजिटल सेवाओं के उदाहरण हैं ।  

  • भारतनेट: गांवों में हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए ।

  • स्टार्टअप इंडिया: उद्यमशीलता को बढ़ावा देने और स्टार्टअप्स को समर्थन देने के लिए ।

  • ई-हॉस्पिटल, SWAYAM प्लस प्लेटफॉर्म, उमंग एप, स्मार्ट सिटी: ये अन्य प्रमुख डिजिटल पहलें हैं ।

  • डिजिटल इंडिया अधिनियम (DIA), 2023: यह प्रस्तावित अधिनियम पुराने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 का स्थान लेगा, जो भारत के बढ़ते इंटरनेट उपयोगकर्ता आधार और तकनीकी प्रगति के अनुकूल है ।

डिजिटलीकरण और नवाचार को बढ़ावा देने से आर्थिक सुधारों की गति तेज हुई है । डिजिटल इंडिया पहल ने न केवल सरकारी सेवाओं की दक्षता और पारदर्शिता में सुधार किया है, बल्कि इसने एक डिजिटल अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए भी आधार तैयार किया है, जिससे नए रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं और नागरिकों के जीवन में समग्र सुधार हुआ है।

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार

विश्व बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में भारत ने उल्लेखनीय सुधार किया है। 2014 में 142वें स्थान से भारत 2020 में 63वें स्थान पर पहुंच गया, जो पांच वर्षों में 79-रैंक की छलांग है । 2018 में, भारत 100वें स्थान से 77वें स्थान पर आ गया, जिसमें 23 स्थानों का सुधार हुआ । यह नियमों को सरल बनाने, नौकरशाही बाधाओं को कम करने और अधिक व्यापार-अनुकूल वातावरण बनाने के लिए सरकार के निरंतर प्रयासों को दर्शाता है । डिजिटलीकरण (ऑनलाइन पंजीकरण, लाइसेंसिंग), ‘स्टार्ट योर बिजनेस इन 30 डेज’ पहल, और निवेशकों के लिए ‘इन्वेस्ट एमपी’ पोर्टल जैसी सुविधाएं इस सुधार में सहायक रही हैं ।

व्यापार सुगमता में सुधार ने घरेलू और विदेशी दोनों निवेशकों के लिए भारत को एक आकर्षक गंतव्य बनाया है। प्रक्रियाओं के सरलीकरण और पारदर्शिता में वृद्धि ने नए व्यवसायों को स्थापित करने और संचालित करने की लागत और समय को कम किया है, जिससे उद्यमशीलता को बढ़ावा मिला है और रोजगार सृजन में वृद्धि हुई है।

विनिवेश नीति

सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (PSUs) में अपनी उपस्थिति को कम करने और राजकोषीय राजस्व जुटाने के लिए एक सक्रिय विनिवेश नीति अपनाई है । 2014 के बाद से, सरकार ने विनिवेश से 4.48 लाख करोड़ रुपये जुटाए हैं, जो 1991 के बाद से हुई सकल विनिवेश आय का 72% है । मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए भी, यह राशि 1991 के बाद से हुई सकल विनिवेश आय का 57% बनती है । इस नीति में रणनीतिक विनिवेश/निजीकरण और सीपीएसई में अल्पांश हिस्सेदारी की बिक्री शामिल है 。 प्रमुख विनिवेश प्रयासों में एयर इंडिया की बिक्री और BPCL के निजीकरण के चल रहे प्रयास शामिल हैं ।

विनिवेश का उद्देश्य राजकोषीय बोझ को कम करना, सार्वजनिक वित्त में सुधार करना, निजी स्वामित्व को प्रोत्साहित करना, विकास कार्यक्रमों हेतु वित्त का प्रबंध करना और बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है ।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति में वृद्धि

2014 के बाद से भारत की प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति में उल्लेखनीय वृद्धि और महत्व देखा गया है। अप्रैल 2014 से सितंबर 2024 के दशक में, भारत में कुल एफडीआई प्रवाह $709.84 बिलियन था, जो पिछले 24 वर्षों में कुल एफडीआई प्रवाह का 68.69% था । वित्त वर्ष 2024-25 की पहली छमाही में एफडीआई प्रवाह में लगभग 26% की वृद्धि हुई, जो $42.1 बिलियन तक पहुंच गया ।  

परिवर्तन लाने वाले कारकों में प्रतिस्पर्धा और नवाचार में सुधार (विश्व प्रतिस्पर्धात्मक सूचकांक में 40वें स्थान पर, वैश्विक नवाचार सूचकांक में 48वें स्थान पर) , वैश्विक निवेश स्थिति (ग्रीनफील्ड परियोजनाओं का तीसरा सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता) , सुधरता कारोबारी माहौल (ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में सुधार) , और नीतियों में सुधार शामिल हैं । सरकार ने एक निवेशक-अनुकूल नीति बनाई है, जिसमें कुछ रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों को छोड़कर अधिकांश क्षेत्र स्वचालित मार्ग के अंतर्गत 100% एफडीआई के लिए खुले हैं । “मेक इन इंडिया”, उदार क्षेत्रीय नीतियां और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसी पहलों ने निवेशकों का विश्वास बढ़ाया है ।  

एफडीआई प्रवाह में वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह नई प्रौद्योगिकियों, पूंजीगत इनपुट और रोजगार के अवसर लाता है । यह मानव पूंजी के विकास में मदद करता है और कॉर्पोरेट कर राजस्व में वृद्धि करता है । एफडीआई भुगतान संतुलन को स्थिर बनाए रखता है और मुद्रा विनिमय बाजार में रुपये के मूल्य को समर्थन प्रदान करता है ।