📚 हिंदी पाठ-बोधन: प्रैक्टिस क्विज 1
हिंदी पाठ-बोधन: प्रैक्टिस क्विज 1
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प्रश्न 1 का 10
राम भारतीय पुरातन इतिहास के अत्यन्त उज्ज्वल नक्षत्रों में से एक हैं। निस्सन्देह, संहिताओं और ब्राह्मण ग्रन्थों में दशरथ और राम के सम्बन्ध में उल्लेख मिलते हैं। किन्तु रामकथा का सबसे पहले वाल्मीकि ने अपने आदिकाव्य रामायण में ही गान किया है। रामायण के आरम्भ में ही जो नारद-वाल्मीकि संवाद दिया गया है और जो इस महान् महाकाव्य के बीज के रूप में है, उससे यह प्रकट होता है कि वाल्मीकि के मन में पहले से ही आदर्श मानव की कल्पना थी फिर भी उनकी काव्य प्रतिभा ने अपने इस आदर्श को किसी काल्पनिक व्यक्ति का चित्रण करके साकार करने का प्रयत्न नहीं किया; वे ऐसे व्यक्ति की खोज में थे, जिनके जीवन को सत्यनिष्ठा, धैर्य, परोपकार, आत्मसंयम, करुणा आदि गुणों का साक्षात् सजीव रूप माना जा सके। नारद ने वाल्मीकि को यह बताया कि दशरथ राम ही ऐसे नायक हैं और वाल्मीकि ने उन्हें तत्काल स्वीकार कर लिया तथा अपनी रामायण में उन्हें अमर कर दिया है।
1. वाल्मीकिकृत रामायण को आदि-काव्य क्यों कहा गया है?
राम भारतीय पुरातन इतिहास के अत्यन्त उज्ज्वल नक्षत्रों में से एक हैं। निस्सन्देह, संहिताओं और ब्राह्मण ग्रन्थों में दशरथ और राम के सम्बन्ध में उल्लेख मिलते हैं। किन्तु रामकथा का सबसे पहले वाल्मीकि ने अपने आदिकाव्य रामायण में ही गान किया है। रामायण के आरम्भ में ही जो नारद-वाल्मीकि संवाद दिया गया है और जो इस महान् महाकाव्य के बीज के रूप में है, उससे यह प्रकट होता है कि वाल्मीकि के मन में पहले से ही आदर्श मानव की कल्पना थी फिर भी उनकी काव्य प्रतिभा ने अपने इस आदर्श को किसी काल्पनिक व्यक्ति का चित्रण करके साकार करने का प्रयत्न नहीं किया; वे ऐसे व्यक्ति की खोज में थे, जिनके जीवन को सत्यनिष्ठा, धैर्य, परोपकार, आत्मसंयम, करुणा आदि गुणों का साक्षात् सजीव रूप माना जा सके। नारद ने वाल्मीकि को यह बताया कि दशरथ राम ही ऐसे नायक हैं और वाल्मीकि ने उन्हें तत्काल स्वीकार कर लिया तथा अपनी रामायण में उन्हें अमर कर दिया है।
2. वाल्मीकि रामायण क्या है?
राम भारतीय पुरातन इतिहास के अत्यन्त उज्ज्वल नक्षत्रों में से एक हैं। निस्सन्देह, संहिताओं और ब्राह्मण ग्रन्थों में दशरथ और राम के सम्बन्ध में उल्लेख मिलते हैं। किन्तु रामकथा का सबसे पहले वाल्मीकि ने अपने आदिकाव्य रामायण में ही गान किया है। रामायण के आरम्भ में ही जो नारद-वाल्मीकि संवाद दिया गया है और जो इस महान् महाकाव्य के बीज के रूप में है, उससे यह प्रकट होता है कि वाल्मीकि के मन में पहले से ही आदर्श मानव की कल्पना थी फिर भी उनकी काव्य प्रतिभा ने अपने इस आदर्श को किसी काल्पनिक व्यक्ति का चित्रण करके साकार करने का प्रयत्न नहीं किया; वे ऐसे व्यक्ति की खोज में थे, जिनके जीवन को सत्यनिष्ठा, धैर्य, परोपकार, आत्मसंयम, करुणा आदि गुणों का साक्षात् सजीव रूप माना जा सके। नारद ने वाल्मीकि को यह बताया कि दशरथ राम ही ऐसे नायक हैं और वाल्मीकि ने उन्हें तत्काल स्वीकार कर लिया तथा अपनी रामायण में उन्हें अमर कर दिया है।
3. वाल्मीकि कैसे व्यक्तित्व की खोज में थे?
राम भारतीय पुरातन इतिहास के अत्यन्त उज्ज्वल नक्षत्रों में से एक हैं। निस्सन्देह, संहिताओं और ब्राह्मण ग्रन्थों में दशरथ और राम के सम्बन्ध में उल्लेख मिलते हैं। किन्तु रामकथा का सबसे पहले वाल्मीकि ने अपने आदिकाव्य रामायण में ही गान किया है। रामायण के आरम्भ में ही जो नारद-वाल्मीकि संवाद दिया गया है और जो इस महान् महाकाव्य के बीज के रूप में है, उससे यह प्रकट होता है कि वाल्मीकि के मन में पहले से ही आदर्श मानव की कल्पना थी फिर भी उनकी काव्य प्रतिभा ने अपने इस आदर्श को किसी काल्पनिक व्यक्ति का चित्रण करके साकार करने का प्रयत्न नहीं किया; वे ऐसे व्यक्ति की खोज में थे, जिनके जीवन को सत्यनिष्ठा, धैर्य, परोपकार, आत्मसंयम, करुणा आदि गुणों का साक्षात् सजीव रूप माना जा सके। नारद ने वाल्मीकि को यह बताया कि दशरथ राम ही ऐसे नायक हैं और वाल्मीकि ने उन्हें तत्काल स्वीकार कर लिया तथा अपनी रामायण में उन्हें अमर कर दिया है।
4. वाल्मीकि के मन में आदर्श मानव की जो कल्पना थी, वह राम के रूप में कैसे साकार हुई?
राम भारतीय पुरातन इतिहास के अत्यन्त उज्ज्वल नक्षत्रों में से एक हैं। निस्सन्देह, संहिताओं और ब्राह्मण ग्रन्थों में दशरथ और राम के सम्बन्ध में उल्लेख मिलते हैं। किन्तु रामकथा का सबसे पहले वाल्मीकि ने अपने आदिकाव्य रामायण में ही गान किया है। रामायण के आरम्भ में ही जो नारद-वाल्मीकि संवाद दिया गया है और जो इस महान् महाकाव्य के बीज के रूप में है, उससे यह प्रकट होता है कि वाल्मीकि के मन में पहले से ही आदर्श मानव की कल्पना थी फिर भी उनकी काव्य प्रतिभा ने अपने इस आदर्श को किसी काल्पनिक व्यक्ति का चित्रण करके साकार करने का प्रयत्न नहीं किया; वे ऐसे व्यक्ति की खोज में थे, जिनके जीवन को सत्यनिष्ठा, धैर्य, परोपकार, आत्मसंयम, करुणा आदि गुणों का साक्षात् सजीव रूप माना जा सके। नारद ने वाल्मीकि को यह बताया कि दशरथ राम ही ऐसे नायक हैं और वाल्मीकि ने उन्हें तत्काल स्वीकार कर लिया तथा अपनी रामायण में उन्हें अमर कर दिया है।
5. नारद-वाल्मीकि संवाद का रामायण में क्या महत्व है?
आधुनिकीकरण से हर समाज की सामाजिक संरचना और मूल्यों में गतिशीलता के नए तत्व उभर कर सामने आते हैं। इन तत्वों के विकास में राष्ट्रीय एकता की प्रक्रिया को बल मिलता है। भारत में अब सामाजिक और सांस्कृतिक आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का पर्याप्त विस्तार हो चुका है। इसे संविधान, लोकतान्त्रिक चुनावों की राजनीति, सामाजिक तथा आर्थिक सुधारों से बल मिला है। इन सभी की शुरुआत समाज की असमानताओं और शोषण को दूर करने के लिए की गयी थी। योजना के जरिए शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, औद्योगीकरण, आर्थिक समृद्धि, समाज-सुधार तथा वितरणशील न्याय के क्षेत्र में व्यापक प्रयत्न किए गए थे। इन सभी ने भारत में सामाजिक संरचना, मूल्यों तथा जातिपरक प्रथाओं पर गहरा प्रभाव डाला है। जैसे-जैसे व्यावसायिक कार्यों में गति आई वैसे-वैसे देश में शिक्षा, शहरीकरण और औद्योगीकरण तथा बाजार की शक्तियों का विकास हुआ। जाति की अस्मिताओं पर दबाव पड़ने लगा। मजदूरी की एवज में मुद्रा देने की व्यापक प्रणाली और गाँवों में बाजार के प्रवेश ने जजमानी व्यवस्था की आर्थिक भूमिका लगभग समाप्त कर दी। व्यवसायों की वंशानुगत विशेषज्ञता का अर्थव्यवस्था में प्रभाव समाप्त हो गया।
6. आधुनिकीकरण का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है?
आधुनिकीकरण से हर समाज की सामाजिक संरचना और मूल्यों में गतिशीलता के नए तत्व उभर कर सामने आते हैं। इन तत्वों के विकास में राष्ट्रीय एकता की प्रक्रिया को बल मिलता है। भारत में अब सामाजिक और सांस्कृतिक आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का पर्याप्त विस्तार हो चुका है। इसे संविधान, लोकतान्त्रिक चुनावों की राजनीति, सामाजिक तथा आर्थिक सुधारों से बल मिला है। इन सभी की शुरुआत समाज की असमानताओं और शोषण को दूर करने के लिए की गयी थी। योजना के जरिए शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, औद्योगीकरण, आर्थिक समृद्धि, समाज-सुधार तथा वितरणशील न्याय के क्षेत्र में व्यापक प्रयत्न किए गए थे। इन सभी ने भारत में सामाजिक संरचना, मूल्यों तथा जातिपरक प्रथाओं पर गहरा प्रभाव डाला है। जैसे-जैसे व्यावसायिक कार्यों में गति आई वैसे-वैसे देश में शिक्षा, शहरीकरण और औद्योगीकरण तथा बाजार की शक्तियों का विकास हुआ। जाति की अस्मिताओं पर दबाव पड़ने लगा। मजदूरी की एवज में मुद्रा देने की व्यापक प्रणाली और गाँवों में बाजार के प्रवेश ने जजमानी व्यवस्था की आर्थिक भूमिका लगभग समाप्त कर दी। व्यवसायों की वंशानुगत विशेषज्ञता का अर्थव्यवस्था में प्रभाव समाप्त हो गया।
7. भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को किससे बढ़ावा मिला है?
आधुनिकीकरण से हर समाज की सामाजिक संरचना और मूल्यों में गतिशीलता के नए तत्व उभर कर सामने आते हैं। इन तत्वों के विकास में राष्ट्रीय एकता की प्रक्रिया को बल मिलता है। भारत में अब सामाजिक और सांस्कृतिक आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का पर्याप्त विस्तार हो चुका है। इसे संविधान, लोकतान्त्रिक चुनावों की राजनीति, सामाजिक तथा आर्थिक सुधारों से बल मिला है। इन सभी की शुरुआत समाज की असमानताओं और शोषण को दूर करने के लिए की गयी थी। योजना के जरिए शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, औद्योगीकरण, आर्थिक समृद्धि, समाज-सुधार तथा वितरणशील न्याय के क्षेत्र में व्यापक प्रयत्न किए गए थे। इन सभी ने भारत में सामाजिक संरचना, मूल्यों तथा जातिपरक प्रथाओं पर गहरा प्रभाव डाला है। जैसे-जैसे व्यावसायिक कार्यों में गति आई वैसे-वैसे देश में शिक्षा, शहरीकरण और औद्योगीकरण तथा बाजार की शक्तियों का विकास हुआ। जाति की अस्मिताओं पर दबाव पड़ने लगा। मजदूरी की एवज में मुद्रा देने की व्यापक प्रणाली और गाँवों में बाजार के प्रवेश ने जजमानी व्यवस्था की आर्थिक भूमिका लगभग समाप्त कर दी। व्यवसायों की वंशानुगत विशेषज्ञता का अर्थव्यवस्था में प्रभाव समाप्त हो गया।
8. व्यावसायिक कार्यों से किसका विकास हुआ?
आधुनिकीकरण से हर समाज की सामाजिक संरचना और मूल्यों में गतिशीलता के नए तत्व उभर कर सामने आते हैं। इन तत्वों के विकास में राष्ट्रीय एकता की प्रक्रिया को बल मिलता है। भारत में अब सामाजिक और सांस्कृतिक आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का पर्याप्त विस्तार हो चुका है। इसे संविधान, लोकतान्त्रिक चुनावों की राजनीति, सामाजिक तथा आर्थिक सुधारों से बल मिला है। इन सभी की शुरुआत समाज की असमानताओं और शोषण को दूर करने के लिए की गयी थी। योजना के जरिए शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, औद्योगीकरण, आर्थिक समृद्धि, समाज-सुधार तथा वितरणशील न्याय के क्षेत्र में व्यापक प्रयत्न किए गए थे। इन सभी ने भारत में सामाजिक संरचना, मूल्यों तथा जातिपरक प्रथाओं पर गहरा प्रभाव डाला है। जैसे-जैसे व्यावसायिक कार्यों में गति आई वैसे-वैसे देश में शिक्षा, शहरीकरण और औद्योगीकरण तथा बाजार की शक्तियों का विकास हुआ। जाति की अस्मिताओं पर दबाव पड़ने लगा। मजदूरी की एवज में मुद्रा देने की व्यापक प्रणाली और गाँवों में बाजार के प्रवेश ने जजमानी व्यवस्था की आर्थिक भूमिका लगभग समाप्त कर दी। व्यवसायों की वंशानुगत विशेषज्ञता का अर्थव्यवस्था में प्रभाव समाप्त हो गया।
9. मुद्रा देने की प्रणाली का क्या प्रभाव पड़ा?
आधुनिकीकरण से हर समाज की सामाजिक संरचना और मूल्यों में गतिशीलता के नए तत्व उभर कर सामने आते हैं। इन तत्वों के विकास में राष्ट्रीय एकता की प्रक्रिया को बल मिलता है। भारत में अब सामाजिक और सांस्कृतिक आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का पर्याप्त विस्तार हो चुका है। इसे संविधान, लोकतान्त्रिक चुनावों की राजनीति, सामाजिक तथा आर्थिक सुधारों से बल मिला है। इन सभी की शुरुआत समाज की असमानताओं और शोषण को दूर करने के लिए की गयी थी। योजना के जरिए शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, औद्योगीकरण, आर्थिक समृद्धि, समाज-सुधार तथा वितरणशील न्याय के क्षेत्र में व्यापक प्रयत्न किए गए थे। इन सभी ने भारत में सामाजिक संरचना, मूल्यों तथा जातिपरक प्रथाओं पर गहरा प्रभाव डाला है। जैसे-जैसे व्यावसायिक कार्यों में गति आई वैसे-वैसे देश में शिक्षा, शहरीकरण और औद्योगीकरण तथा बाजार की शक्तियों का विकास हुआ। जाति की अस्मिताओं पर दबाव पड़ने लगा। मजदूरी की एवज में मुद्रा देने की व्यापक प्रणाली और गाँवों में बाजार के प्रवेश ने जजमानी व्यवस्था की आर्थिक भूमिका लगभग समाप्त कर दी। व्यवसायों की वंशानुगत विशेषज्ञता का अर्थव्यवस्था में प्रभाव समाप्त हो गया।
10. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का उद्देश्य क्या था?