📚 हिंदी पाठ-बोधन: प्रैक्टिस क्विज 2

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हिंदी पाठ-बोधन: प्रैक्टिस क्विज 2
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प्रश्न 1 का 10
बुद्धिवादी युग में आज विद्यार्थी ‘अहंवादी’ बन गया है। अहं पूर्णतः बुरी चीज़ नहीं कही जा सकती। वह व्यक्तित्व का एक अंग है और एक सीमा तक आवश्यक भी है किन्तु आज का विद्यार्थी अपना महत्व बताकर सम्मान प्राप्त करना चाहता है। जब महत्वाकांक्षी छात्र अपने गुरुजनों से स्नेह, प्रशंसा तथा सम्मान नहीं पाते तब उनका हृदय विद्रोह कर उठता है। यही विद्रोह हड़ताल और संघर्ष के रूप में प्रकट होता है। माता-पिता के उचित मार्गदर्शन के अभाव में बच्चे उत्तम संस्कार ग्रहण नहीं कर पाते। विद्यालय या महाविद्यालयों में प्रवेश करके ये मर्यादाहीन और उच्छृंखल बन जाते हैं।
1. आज के विद्यार्थी का अहंवाद:
A
पूर्णतः बुरी चीज़ नहीं है।
B
उसके व्यक्तित्व का अंग है।
C
एक सीमा तक आवश्यक है।
D
बुद्धिवादी युग की देन है।
बुद्धिवादी युग में आज विद्यार्थी ‘अहंवादी’ बन गया है। अहं पूर्णतः बुरी चीज़ नहीं कही जा सकती। वह व्यक्तित्व का एक अंग है और एक सीमा तक आवश्यक भी है किन्तु आज का विद्यार्थी अपना महत्व बताकर सम्मान प्राप्त करना चाहता है। जब महत्वाकांक्षी छात्र अपने गुरुजनों से स्नेह, प्रशंसा तथा सम्मान नहीं पाते तब उनका हृदय विद्रोह कर उठता है। यही विद्रोह हड़ताल और संघर्ष के रूप में प्रकट होता है। माता-पिता के उचित मार्गदर्शन के अभाव में बच्चे उत्तम संस्कार ग्रहण नहीं कर पाते। विद्यालय या महाविद्यालयों में प्रवेश करके ये मर्यादाहीन और उच्छृंखल बन जाते हैं।
2. विद्यार्थी महत्वाकांक्षी होने के कारण:
A
सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं।
B
गुरुजनों का स्नेह प्राप्त करना चाहते हैं।
C
अपना महत्व रखते हैं।
D
प्रशंसित होना चाहते हैं।
बुद्धिवादी युग में आज विद्यार्थी ‘अहंवादी’ बन गया है। अहं पूर्णतः बुरी चीज़ नहीं कही जा सकती। वह व्यक्तित्व का एक अंग है और एक सीमा तक आवश्यक भी है किन्तु आज का विद्यार्थी अपना महत्व बताकर सम्मान प्राप्त करना चाहता है। जब महत्वाकांक्षी छात्र अपने गुरुजनों से स्नेह, प्रशंसा तथा सम्मान नहीं पाते तब उनका हृदय विद्रोह कर उठता है। यही विद्रोह हड़ताल और संघर्ष के रूप में प्रकट होता है। माता-पिता के उचित मार्गदर्शन के अभाव में बच्चे उत्तम संस्कार ग्रहण नहीं कर पाते। विद्यालय या महाविद्यालयों में प्रवेश करके ये मर्यादाहीन और उच्छृंखल बन जाते हैं।
3. छात्र क्यों विद्रोह कर सकते हैं?
A
सम्मान न प्राप्त कर पाने के कारण
B
महत्व न स्वीकृत होने के कारण
C
महत्वाकांक्षी होने के कारण
D
महत्वाकांक्षी से प्रशंसा न मिलने के कारण
बुद्धिवादी युग में आज विद्यार्थी ‘अहंवादी’ बन गया है। अहं पूर्णतः बुरी चीज़ नहीं कही जा सकती। वह व्यक्तित्व का एक अंग है और एक सीमा तक आवश्यक भी है किन्तु आज का विद्यार्थी अपना महत्व बताकर सम्मान प्राप्त करना चाहता है। जब महत्वाकांक्षी छात्र अपने गुरुजनों से स्नेह, प्रशंसा तथा सम्मान नहीं पाते तब उनका हृदय विद्रोह कर उठता है। यही विद्रोह हड़ताल और संघर्ष के रूप में प्रकट होता है। माता-पिता के उचित मार्गदर्शन के अभाव में बच्चे उत्तम संस्कार ग्रहण नहीं कर पाते। विद्यालय या महाविद्यालयों में प्रवेश करके ये मर्यादाहीन और उच्छृंखल बन जाते हैं।
4. छात्रों का विद्रोह प्रकट होता है:
A
अहंवाद से
B
हड़ताल से
C
उच्छृंखल होने से
D
पढ़ाई छोड़ने से
बुद्धिवादी युग में आज विद्यार्थी ‘अहंवादी’ बन गया है। अहं पूर्णतः बुरी चीज़ नहीं कही जा सकती। वह व्यक्तित्व का एक अंग है और एक सीमा तक आवश्यक भी है किन्तु आज का विद्यार्थी अपना महत्व बताकर सम्मान प्राप्त करना चाहता है। जब महत्वाकांक्षी छात्र अपने गुरुजनों से स्नेह, प्रशंसा तथा सम्मान नहीं पाते तब उनका हृदय विद्रोह कर उठता है। यही विद्रोह हड़ताल और संघर्ष के रूप में प्रकट होता है। माता-पिता के उचित मार्गदर्शन के अभाव में बच्चे उत्तम संस्कार ग्रहण नहीं कर पाते। विद्यालय या महाविद्यालयों में प्रवेश करके ये मर्यादाहीन और उच्छृंखल बन जाते हैं।
5. विद्यार्थी मर्यादाहीन और उच्छृंखल क्यों बन जाते हैं?
A
कठिन पढ़ाई के कारण
B
माता-पिता के उचित मार्गदर्शन के अभाव में
C
सामाजिक दबाव के कारण
D
आर्थिक समस्याओं के कारण
आधुनिकता एक सार्वभौमिक समस्या है। ध्रुवीकरण के रहते भी इस समस्या की विलक्षण प्रकृति ने सम्पूर्ण विश्व की चेतना को परस्पर संघातों के माध्यम से समस्या का एक सम्पूर्ण भेंट किया है। आधुनिकता, इस स्तर पर सार्वभौमिक सत्य के चक्र से जुड़ी हुई एक विविध विचार पद्धति है, जो चक्र के घुमाव में केवल ‘घुमाव’ के स्तर पर लक्षित की जा सकती है। यही कारण है कि इसकी अलग-अलग परतें खोल कर दिखला पाना स्वतः एक जटिल समस्या है। सार्वभौमिक सत्य के चक्र के घुमाव में लक्षित आधुनिकता की अपनी परिस्थितियाँ और सन्दर्भ हैं, जिनके अवलोकन से समस्या का विम्ब सहजानुभव का विषय बन सकता है। चेतना के विकास-क्रम की पृष्ठभूमि तैयार करनेवाली अन्तर्विस्फोटक चेतना-संघर्ष की प्रक्रिया, आधुनिकता मूल्यों की बद्ध-प्रणाली का विरोधी गाण्डीव बन चुकी है। अपनी लैंगिक शब्द-सत्ता में स्त्रीलिंग का बोध करते हुए भी वह अपनी प्रकृति में अर्द्धनारीश्वर से अखण्डता लिए हुए है। चेतन संघर्ष की प्रक्रिया का ही परिणाम है कि शताब्दियों से स्वीकार किया जा रहा ‘परम मूल्य’, जिससे दूसरे अथाह मूल्यों की निःसृति सम्भव मानी जाती थी, आज स्वयं में एक प्रश्न चिह्न है। आधुनिकता की परिस्थिति की शुरुआत का यह प्राथमिक सन्दर्भ माना जा सकता है। यह अलग बात है कि आधुनिकता ने ‘परम मूल्य’ को पूर्णतः खण्डित नहीं किया लेकिन जिस प्रकार अपने विद्रोहशील चेतन के प्रत्यय से जुड़कर यह प्रश्नचिह्न का अस्तित्व खड़ा कर सकी है, वह शाश्वत सत्य की सार्थकताओं और निरर्थकताओं अथवा क्षमताओं और अक्षमताओं को अभूतपूर्व रूप में उभारता है।
6. आधुनिकता कैसी समस्या है?
A
मनोवैज्ञानिक
B
शारीरिक
C
आर्थिक
D
सार्वभौमिक
आधुनिकता एक सार्वभौमिक समस्या है। ध्रुवीकरण के रहते भी इस समस्या की विलक्षण प्रकृति ने सम्पूर्ण विश्व की चेतना को परस्पर संघातों के माध्यम से समस्या का एक सम्पूर्ण भेंट किया है। आधुनिकता, इस स्तर पर सार्वभौमिक सत्य के चक्र से जुड़ी हुई एक विविध विचार पद्धति है, जो चक्र के घुमाव में केवल ‘घुमाव’ के स्तर पर लक्षित की जा सकती है। यही कारण है कि इसकी अलग-अलग परतें खोल कर दिखला पाना स्वतः एक जटिल समस्या है। सार्वभौमिक सत्य के चक्र के घुमाव में लक्षित आधुनिकता की अपनी परिस्थितियाँ और सन्दर्भ हैं, जिनके अवलोकन से समस्या का विम्ब सहजानुभव का विषय बन सकता है। चेतना के विकास-क्रम की पृष्ठभूमि तैयार करनेवाली अन्तर्विस्फोटक चेतना-संघर्ष की प्रक्रिया, आधुनिकता मूल्यों की बद्ध-प्रणाली का विरोधी गाण्डीव बन चुकी है। अपनी लैंगिक शब्द-सत्ता में स्त्रीलिंग का बोध करते हुए भी वह अपनी प्रकृति में अर्द्धनारीश्वर से अखण्डता लिए हुए है। चेतन संघर्ष की प्रक्रिया का ही परिणाम है कि शताब्दियों से स्वीकार किया जा रहा ‘परम मूल्य’, जिससे दूसरे अथाह मूल्यों की निःसृति सम्भव मानी जाती थी, आज स्वयं में एक प्रश्न चिह्न है। आधुनिकता की परिस्थिति की शुरुआत का यह प्राथमिक सन्दर्भ माना जा सकता है। यह अलग बात है कि आधुनिकता ने ‘परम मूल्य’ को पूर्णतः खण्डित नहीं किया लेकिन जिस प्रकार अपने विद्रोहशील चेतन के प्रत्यय से जुड़कर यह प्रश्नचिह्न का अस्तित्व खड़ा कर सकी है, वह शाश्वत सत्य की सार्थकताओं और निरर्थकताओं अथवा क्षमताओं और अक्षमताओं को अभूतपूर्व रूप में उभारता है।
7. आधुनिकता किसके चक्र में जुड़ी हुई विविध विचार वाली पद्धति है?
A
ईश्वर के
B
समाज के
C
सार्वभौमिक सत्य के
D
घुमाव के
आधुनिकता एक सार्वभौमिक समस्या है। ध्रुवीकरण के रहते भी इस समस्या की विलक्षण प्रकृति ने सम्पूर्ण विश्व की चेतना को परस्पर संघातों के माध्यम से समस्या का एक सम्पूर्ण भेंट किया है। आधुनिकता, इस स्तर पर सार्वभौमिक सत्य के चक्र से जुड़ी हुई एक विविध विचार पद्धति है, जो चक्र के घुमाव में केवल ‘घुमाव’ के स्तर पर लक्षित की जा सकती है। यही कारण है कि इसकी अलग-अलग परतें खोल कर दिखला पाना स्व_SPELLING_तः एक जटिल समस्या है। सार्वभौमिक सत्य के चक्र के घुमाव में लक्षित आधुनिकता की अपनी परिस्थितियाँ और सन्दर्भ हैं, जिनके अवलोकन से समस्या का विम्ब सहजानुभव का विषय बन सकता है। चेतना के विकास-क्रम की पृष्ठभूमि तैयार करनेवाली अन्तर्विस्फोटक चेतना-संघर्ष की प्रक्रिया, आधुनिकता मूल्यों की बद्ध-प्रणाली का विरोधी गाण्डीव बन चुकी है। अपनी लैंगिक शब्द-सत्ता में स्त्रीलिंग का बोध करते हुए भी वह अपनी प्रकृति में अर्द्धनारीश्वर से अखण्डता लिए हुए है। चेतन संघर्ष की प्रक्रिया का ही परिणाम है कि शताब्दियों से स्वीकार किया जा रहा ‘परम मूल्य’, जिससे दूसरे अथाह मूल्यों की निःसृति सम्भव मानी जाती थी, आज स्वयं में एक प्रश्न चिह्न है। आधुनिकता की परिस्थिति की शुरुआत का यह प्राथमिक सन्दर्भ माना जा सकता है। यह अलग बात है कि आधुनिकता ने ‘परम मूल्य’ को पूर्णतः खण्डित नहीं किया लेकिन जिस प्रकार अपने विद्रोहशील चेतन के प्रत्यय से जुड़कर यह प्रश्नचिह्न का अस्तित्व खड़ा कर सकी है, वह शाश्वत सत्य की सार्थकताओं और निरर्थकताओं अथवा क्षमताओं और अक्षमताओं को अभूतपूर्व रूप में उभारता है।
8. आधुनिकता ने किसे पूर्णतः खण्डित नहीं किया?
A
जीवन-मूल्य को
B
परम मूल्य को
C
समाज को
D
चेतना को
आधुनिकता एक सार्वभौमिक समस्या है। ध्रुवीकरण के रहते भी इस समस्या की विलक्षण प्रकृति ने सम्पूर्ण विश्व की चेतना को परस्पर संघातों के माध्यम से समस्या का एक सम्पूर्ण भेंट किया है। आधुनिकता, इस स्तर पर सार्वभौमिक सत्य के चक्र से जुड़ी हुई एक विविध विचार पद्धति है, जो चक्र के घुमाव में केवल ‘घुमाव’ के स्तर पर लक्षित की जा सकती है। यही कारण है कि इसकी अलग-अलग परतें खोल कर दिखला पाना स्वतः एक जटिल समस्या है। सार्वभौमिक सत्य के चक्र के घुमाव में लक्षित आधुनिकता की अपनी परिस्थितियाँ और सन्दर्भ हैं, जिनके अवलोकन से समस्या का विम्ब सहजानुभव का विषय बन सकता है। चेतना के विकास-क्रम की पृष्ठभूमि तैयार करनेवाली अन्तर्विस्फोटक चेतना-संघर्ष की प्रक्रिया, आधुनिकता मूल्यों की बद्ध-प्रणाली का विरोधी गाण्डीव बन चुकी है। अपनी लैंगिक शब्द-सत्ता में स्त्रीलिंग का बोध करते हुए भी वह अपनी प्रकृति में अर्द्धनारीश्वर से अखण्डता लिए हुए है। चेतन संघर्ष की प्रक्रिया का ही परिणाम है कि शताब्दियों से स्वीकार किया जा रहा ‘परम मूल्य’, जिससे दूसरे अथाह मूल्यों की निःसृति सम्भव मानी जाती थी, आज स्वयं में एक प्रश्न चिह्न है। आधुनिकता की परिस्थिति की शुरुआत का यह प्राथमिक सन्दर्भ माना जा सकता है। यह अलग बात है कि आधुनिकता ने ‘परम मूल्य’ को पूर्णतः खण्डित नहीं किया लेकिन जिस प्रकार अपने विद्रोहशील चेतन के प्रत्यय से जुड़कर यह प्रश्नचिह्न का अस्तित्व खड़ा कर सकी है, वह शाश्वत सत्य की सार्थकताओं और निरर्थकताओं अथवा क्षमताओं और अक्षमताओं को अभूतपूर्व रूप में उभारता है।
9. किस प्रक्रिया के कारण परम मूल्य, प्रश्न चिह्नमात्र बन गया है?
A
आधुनिकता
B
ईश्वरीय विधान
C
चेतन संघर्ष
D
निःसृति
आधुनिकता एक सार्वभौमिक समस्या है। ध्रुवीकरण के रहते भी इस समस्या की विलक्षण प्रकृति ने सम्पूर्ण विश्व की चेतना को परस्पर संघातों के माध्यम से समस्या का एक सम्पूर्ण भेंट किया है। आधुनिकता, इस स्तर पर सार्वभौमिक सत्य के चक्र से जुड़ी हुई एक विविध विचार पद्धति है, जो चक्र के घुमाव में केवल ‘घुमाव’ के स्तर पर लक्षित की जा सकती है। यही कारण है कि इसकी अलग-अलग परतें खोल कर दिखला पाना स्वतः एक जटिल समस्या है। सार्वभौमिक सत्य के चक्र के घुमाव में लक्षित आधुनिकता की अपनी परिस्थितियाँ और सन्दर्भ हैं, जिनके अवलोकन से समस्या का विम्ब सहजानुभव का विषय बन सकता है। चेतना के विकास-क्रम की पृष्ठभूमि तैयार करनेवाली अन्तर्विस्फोटक चेतना-संघर्ष की प्रक्रिया, आधुनिकता मूल्यों की बद्ध-प्रणाली का विरोधी गाण्डीव बन चुकी है। अपनी लैंगिक शब्द-सत्ता में स्त्रीलिंग का बोध करते हुए भी वह अपनी प्रकृति में अर्द्धनारीश्वर से अखण्डता लिए हुए है। चेतन संघर्ष की प्रक्रिया का ही परिणाम है कि शताब्दियों से स्वीकार किया जा रहा ‘परम मूल्य’, जिससे दूसरे अथाह मूल्यों की निःसृति सम्भव मानी जाती थी, आज स्वयं में एक प्रश्न चिह्न है। आधुनिकता की परिस्थिति की शुरुआत का यह प्राथमिक सन्दर्भ माना जा सकता है। यह अलग बात है कि आधुनिकता ने ‘परम मूल्य’ को पूर्णतः खण्डित नहीं किया लेकिन जिस प्रकार अपने विद्रोहशील चेतन के प्रत्यय से जुड़कर यह प्रश्नचिह्न का अस्तित्व खड़ा कर सकी है, वह शाश्वत सत्य की सार्थकताओं और निरर्थकताओं अथवा क्षमताओं और अक्षमताओं को अभूतपूर्व रूप में उभारता है।
10. आधुनिकता की प्रकृति को किसके समान बताया गया है?
A
सामाजिक परिवर्तन
B
अर्द्धनारीश्वर
C
शाश्वत सत्य
D
ध्रुवीकरण
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