हिंदी वर्णमाला hindi varnmala (अध्याय-1)

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📖नोट्स 📖

👇वर्ण, वर्णमाला(Alphabet) की परिभाषा👇

👉वर्ण- वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खंड या टुकड़े नहीं किये जा सकते। जैसे- अ, ई, व, च, क, ख् इत्यादि।
वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है, इसके और खंड नहीं किये जा सकते।8
हिन्दी में 52 वर्ण हैं।

👉वर्णमाला वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं।

प्रत्येक भाषा की अपनी वर्णमाला होती है।
हिंदी- अ, आ, क, ख, ग…..
अंग्रेजी- A, B, C, D, E….

👇वर्ण के भेद👇

हिंदी भाषा में वर्ण दो प्रकार के होते है।- (1)स्वर (vowel) (2) व्यंजन (Consonant)

👉स्वर (vowel) :- वे वर्ण जिनके उच्चारण में किसी अन्य वर्ण की सहायता की आवश्यकता नहीं होती, स्वर कहलाता है।

इसके उच्चारण में कंठ, तालु का उपयोग होता है, जीभ, होठ का नहीं।

हिंदी वर्णमाला में 11 स्वर है

जैसे– अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ ऋ ।

हिंदी वर्णमाला प्रश्नोंत्तर

👇स्वर के भेद 👇

स्वर के दो भेद होते है-
(i) मूल स्वर(ii) संयुक्त स्वर

(i) मूल स्वर:- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ

(ii) संयुक्त स्वर:- ऐ (अ +ए) और औ (अ +ओ)

मूल स्वर के भेद

मूल स्वर के दो भेद होते है –
(i) ह्स्व स्वर(ii) दीर्घ स्वर

👉ह्रस्व स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है उन्हें ह्स्व स्वर कहते है।
ह्स्व स्वर चार होते है -अ आ उ ऋ।

‘ऋ’ की मात्रा (ृ) के रूप में लगाई जाती है

👉दीर्घ स्वर :-वे स्वर जिनके उच्चारण में अधिक समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते है।

दीर्घ स्वर सात होते है -आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।

दीर्घ स्वर दो शब्दों के योग से बनते है।
जैसे- आ =(अ +अ )
ई =(इ +इ )
ऊ =(उ +उ )
ए =(अ +इ )
ऐ =(अ +ए )
ओ =(अ +उ )
औ =(अ +ओ )

नोट – अं, अः अयोगवाह कहलाते हैं। वर्णमाला में इनका स्थान स्वरों के बाद और व्यंजनों से पहले होता है। अं को अनुस्वार तथा अः को विसर्ग कहा जाता है।

अनुनासिक, निरनुनासिक, अनुस्वार और विसर्ग

अनुनासिक (ँ)– ऐसे स्वरों का उच्चारण नाक और मुँह से होता है और उच्चारण में लघुता रहती है। जैसे- गाँव, दाँत, आँगन, साँचा इत्यादि।

अनुस्वार ( ं) यह स्वर के बाद आनेवाला व्यंजन है, जिसकी ध्वनि नाक से निकलती है। जैसे- अंगूर, अंगद, कंकन।

निरनुनासिक– केवल मुँह से बोले जानेवाला सस्वर वर्णों को निरनुनासिक कहते हैं। जैसे- इधर, उधर, आप, अपना, घर इत्यादि।

विसर्ग( ः)– अनुस्वार की तरह विसर्ग भी स्वर के बाद आता है। यह व्यंजन है और इसका उच्चारण ‘ह’ की तरह होता है। जैसे- मनःकामना, पयःपान, अतः, स्वतः, दुःख इत्यादि।

हिंदी वर्णमाला प्रश्नोंत्तर

👉 व्यंजन (Consonant):- जिन वर्णो को बोलने के लिए स्वर की सहायता लेनी पड़ती है उन्हें व्यंजन कहते है।
जैसे- क, ख, ग, च, छ, त, थ, द, भ, म इत्यादि।

प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में ‘अ’ की ध्वनि छिपी रहती है। ‘अ’ के बिना व्यंजन का उच्चारण सम्भव नहीं। जैसे- ख्+अ=ख, प्+अ =प। हिन्दी में व्यंजनवर्णो की संख्या ३३ है।

👇व्यंजनों के प्रकार -👇

व्यंजनों तीन प्रकार के होते है-
(1)स्पर्श व्यंजन
(2)अन्तःस्थ व्यंजन
(3)उष्म व्यंजन

👉स्पर्श व्यंजन :-  जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ मुँह के किसी भाग जैसे- कण्ठ, तालु, मूर्धा, दाँत, अथवा होठ का स्पर्श करती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते है।

ये 25 व्यंजन होते है

(1)क वर्ग- क ख ग घ ङ ये कण्ठ का स्पर्श करते है।

(2)च वर्ग- च छ ज झ ञ ये तालु का स्पर्श करते है।

(3)ट वर्ग- ट ठ ड ढ ण (ड़, ढ़) ये मूर्धा का स्पर्श करते है।

(4)त वर्ग- त थ द ध न ये दाँतो का स्पर्श करते है।

(5) प वर्ग- प फ ब भ म ये होठों का स्पर्श करते है।

👉अन्तःस्थ व्यंजन :- ‘अन्तः’ का अर्थ होता है- ‘भीतर’। उच्चारण के समय जो व्यंजन मुँह के भीतर ही रहे उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन कहते है।

📖ये व्यंजन चार होते है- य, र, ल, व।

👉उष्म व्यंजन :-  जिन वर्णो के उच्चारण के समय हवा मुँह के विभिन्न भागों से टकराये और साँस में गर्मी पैदा कर दे, उन्हें उष्म व्यंजन कहते है।

📖ये भी चार व्यंजन होते है- श, ष, स, ह|

उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण

व्यंजनों का उच्चारण करते समय हवा मुख के अलग-अलग भागों से टकराती है। उच्चारण के अंगों के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण इस प्रकार है :

(i) कंठ्य (गले से) – क, ख, ग, घ, ङ

(ii) तालव्य (कठोर तालु से) – च, छ, ज, झ, ञ, य, श

(iii) मूर्धन्य (कठोर तालु के अगले भाग से) – ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़, ष

(iv) दंत्य (दाँतों से) – त, थ, द, ध, न

(v) वर्त्सय (दाँतों के मूल से) – स, ज, र, ल

(vi) ओष्ठय (दोनों होंठों से) – प, फ, ब, भ, म

(vii) दंतौष्ठय (निचले होंठ व ऊपरी दाँतों से) – व, फ

(viii) स्वर यंत्र से – ह

श्वास (प्राण-वायु) की मात्रा के आधार पर वर्ण-भेद

उच्चारण में वायुप्रक्षेप की दृष्टि से व्यंजनों के दो भेद हैं-

(1) अल्पप्राण (2) महाप्राण

👉अल्पप्राण :-जिनके उच्चारण में श्वास अल्प मात्रा में निकले और जिनमें ‘हकार’-जैसी ध्वनि नहीं होती, उन्हें अल्पप्राण कहते हैं।

प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवाँ वर्ण अल्पप्राण व्यंजन हैं।
जैसे-

  • क, ग, ङ;
  • च, ज, ञ;
  • ट, ड, ण;
  • त, द, न;
  • प, ब, म,।
  • अन्तःस्थ (य, र, ल, व ) भी अल्पप्राण ही हैं।

👉 महाप्राण:-जिनके उच्चारण में श्वास अधिक मात्रा में निकलती हैं। उन्हें महाप्राण कहते हैं।

प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण तथा समस्त ऊष्म वर्ण महाप्राण हैं।
जैसे-

  • ख, घ;
  • छ, झ;
  • ठ, ढ;
  • थ, ध;
  • फ, भ
  • श, ष, स, ह।

👉संयुक्त व्यंजन :- जो व्यंजन दो या दो से अधिक व्यंजनों के मेल से बनते हैं, वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं।

ये संख्या में चार हैं :

  1. क्ष = क्+ ष
  2. त्र = त् + र
  3. ज्ञ = ज् + ञ
  4. श्र = श् + र

👉द्वित्व व्यंजन :- जब एक व्यंजन का अपने समरूप व्यंजन से मेल होता है, तब वह द्वित्व व्यंजन कहलाता हैं।

जैसे- क् + क = पक्का
च् + च = कच्चा
म् + म = चम्मच
त् + त = पत्ता

👉संयुक्ताक्षर :- जब एक स्वर रहित व्यंजन अन्य स्वर सहित व्यंजन से मिलता है, तब वह संयुक्ताक्षर कहलाता हैं।

जैसे- क् + त = क्त = संयुक्त
स् + थ = स्थ = स्थान
स् + व = स्व = स्वाद
द् + ध = द्ध = शुद्ध

वर्णों की मात्राएँ

व्यंजन वर्णों के उच्चारण में जिन स्वरमूलक चिह्नों का व्यवहार होता है, उन्हें ‘मात्राएँ’ कहते हैं।
ये मात्राएँ दस है; जैसे- ा े, ै ो ू इत्यादि।

👇घोष और अघोष व्यंजन👇

👉घोष व्यंजन: जिन व्यंजनवर्णों के उच्चारण में स्वर-तन्त्रियों  में  कंपन होता हैं, वे घोष कहलाते हैं।

इसके अंतर्गत सभी स्वर वर्णों के तृतीय, चतुर्थ और पंचम वर्ण, अन्तःस्थ और ह आते हैं।

👉अघोष व्यंजन:- जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में स्वर-तन्त्रियाँ कंपित नहीं होती हैं, वे अघोष कहलाते हैं।

इस वर्ग में वर्गों के प्रथम और द्वितीय वर्ण और तीनों स (श, ष, स) आते हैं।

उदाहरण के लिए-
अघोष वर्ण-

  • क, ख,
  • च, छ,
  • ट, ठ,
  • त, थ,
  • प, फ,
  • श, ष, स।

👇हल्👇

👉हल्- व्यंजनों के नीचे जब एक तिरछी रेखा लगाई जाय, तब उसे हल् कहते हैं।
‘हल्’ लगाने का अर्थ है कि व्यंजन में स्वरवर्ण का बिलकुल अभाव है या व्यंजन आधा हैं।
ऐसी स्थिति में इसके रूप इस प्रकार होंगे- क्, ख्, ग्, च् ।

👉हिंदी वर्णमाला प्रश्नोंत्तर

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