कारक (Case) Karak सामान्य हिंदी अध्याय 9

कारक (Case) की परिभाषा

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका (संज्ञा या सर्वनाम का) सम्बन्ध सूचित हो, उसे (उस रूप को) ‘कारक’ कहते हैं।

जैसे- ”रामचन्द्रजी ने खारे जल के समुद्र पर बन्दरों से पुल बँधवा दिया।”
इस वाक्य में ‘रामचन्द्रजी ने’, ‘समुद्र पर’, ‘बन्दरों से’ और ‘पुल’ संज्ञाओं के रूपान्तर है, जिनके द्वारा इन संज्ञाओं का सम्बन्ध ‘बँधवा दिया’ क्रिया के साथ सूचित होता है।

श्रीराम ने रावण को बाण से मारा
इस वाक्य में प्रत्येक शब्द एक-दूसरे से बँधा है और प्रत्येक शब्द का सम्बन्ध किसी न किसी रूप में क्रिया के साथ है।

यहाँ ‘ने’ ‘को’ ‘से’ शब्दों ने वाक्य में आये अनेक शब्दों का सम्बन्ध क्रिया से जोड़ दिया है। यदि ये शब्द न हो तो शब्दों का क्रिया के साथ तथा आपस में कोई सम्बन्ध नहीं होगा। संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ सम्बन्ध स्थापित करने वाला रूप कारक होता है।

कारक के भेद-

हिन्दी में कारको की संख्या आठ है-
(1)कर्ता कारक (Nominative case)
(2)कर्म कारक (Accusative case)
(3)करण कारक (Instrument case)
(4)सम्प्रदान कारक(Dative case)
(5)अपादान कारक(Ablative case)
(6)सम्बन्ध कारक (Gentive case)
(7)अधिकरण कारक (Locative case)
(8)संबोधन कारक(Vocative case)

कारक के विभक्ति चिन्ह

कारक लक्षण चिह्न
(1)कर्ता जो काम करें ने
(2)कर्म जिस पर क्रिया का फल पड़े को
(3)करण काम करने (क्रिया) का साधन से, के द्वारा
(4)सम्प्रदान जिसके लिए किया की जाए को,के लिए
(5)अपादान जिससे कोई वस्तु अलग हो से (अलग के अर्थ में)
(6) सम्बन्ध जो एक शब्द का दूसरे से सम्बन्ध जोड़े का, की, के, रा, री, रे
(7)अधिकरण जो क्रिया का आधार हो में,पर
(8) सम्बोधन जिससे किसी को पुकारा जाये हे! अरे! हो!

(1)कर्ता कारक (Nominative case):-वाक्य में जो शब्द काम करने वाले के अर्थ में आता है, उसे कर्ता कहते है। दूसरे शब्द में- क्रिया का करने वाला ‘कर्ता’ कहलाता है।
इसकी विभक्ति ‘ने’ लुप्त है।

जैसे- ”मोहन खाता है।” इस वाक्य में खाने का काम मोहन करता है अतः कर्ता मोहन है ।
”मनोज ने पत्र लिखा।” इस वाक्य क्रिया का करने वाला ‘मनोज’ कर्ता है।
विशेष- कभी-कभी कर्ता कारक में ‘ने’ चिह्न नहीं भी लगता है। जैसे- ‘घोड़ा’ दौड़ता है।

(2)कर्म कारक (Accusative case) :-जिस संज्ञा या सर्वनाम पर क्रिया का प्रभाव पड़े उसे कर्म कारक कहते है।
जैसे- माँ बच्चे को सुला रही है।

इस वाक्य में सुलाने की क्रिया का प्रभाव बच्चे पर पड़ रहा है। इसलिए ‘बच्चे को’ कर्म कारक है।
राम ने रावण को मारा। यहाँ ‘रावण को’ कर्म है।

विशेष-कभी-कभी ‘को’ चिह्न का प्रयोग नहीं भी होता है। जैसे- मोहन पुस्तक पढता है।

(3)करण कारक (Instrument case):- जिस वस्तु की सहायता से या जिसके द्वारा कोई काम किया जाता है, उसे करण कारक कहते है।
जैसे- ”हम आँखों से देखते है।”
इस वाक्य में देखने की क्रिया करने के लिए आँख की सहायता ली गयी है। इसलिए आँखों से करण कारक है ।

(4)सम्प्रदान कारक (Dative case):- जिसके लिए कोई क्रिया (काम )की जाती है,
उसे सम्प्रदान कारक कहते है।
दूसरे शब्दों में- जिसके लिए कुछ किया जाय या जिसको कुछ दिया जाय, इसका बोध करानेवाले शब्द के रूप को सम्प्रदान कारक कहते है।
इसकी विभक्ति ‘को’ और ‘के लिए’ है।

जैसे- शिष्य ने अपने गुरु के लिए सब कुछ किया। गरीब को धन दीजिए।
”वह अरुण के लिए मिठाई लाया।”
इस वाक्य में लाने का काम ‘अरुण के लिए’ हुआ। इसलिए ‘अरुण के लिए’ सम्प्रदान कारक है।

(5)अपादान कारक(Ablative case):-जिससे किसी वस्तु का अलग होना पाया जाता है,
उसे अपादान कारक कहते है।

इसकी विभक्ति ‘से’ है।
जैसे- ”दूल्हा घोड़े से गिर पड़ा।

मोहन ने घड़े से पानी ढाला।

बिल्ली छत से कूद पड़ी
चूहा बिल से बाहर निकला।

(6)सम्बन्ध कारक (Gentive case):-शब्द के जिस रूप से संज्ञा या सर्वनाम के संबध का ज्ञान हो, उसे सम्बन्ध कारक कहते है।
इसकी विभक्ति ‘का’, ‘की’, और ‘के’ हैं।

जैसे- ”सीता का भाई आया है।”

(7)अधिकरण कारक (Locative case):-शब्द के जिस रूप से क्रिया के आधार का ज्ञान होता है, उसे अधिकरण कारक कहते है।

इसकी विभक्ति ‘में’ और ‘पर’ हैं।
जैसे-
मोहन मैदान में खेल रहा है। इस वाक्य में ‘खेलने’ की क्रिया किस स्थान पर हो रही है ?
मैदान पर। इसलिए मैदान पर अधिकरण कारक है।

(8)संबोधन कारक(Vocative case):-जिन शब्दों का प्रयोग किसी को बुलाने या पुकारने में किया जाता है, उसे संबोधन कारक कहते है।

इसकी विभक्ति ‘अरे’, ‘हे’ आदि है।
जैसे-
‘हे भगवान’ से पुकारने का बोध होता है। सम्बोधनकारक की कोई विभक्ति नहीं होती है। इसे प्रकट करने के लिए ‘हे’, ‘अरे’, ‘रे’ आदि शब्दों का प्रयोग होता है।

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